सूक्ति संचयन | Sukti Sanchayan

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Sukti Sanchayan by हर्षचन्द्र - Harshachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लड़ाई सड्ने वाला में यही दा पक्ष हैं। एक स्वाथ रक्षा भ लख्ते हैं भौर दूसरे स्वार्थ विस्तार म लडते है। इन वृत्तिया को जगत मे तरह-तरह के नाम प्राप्त हैं--न्याय, फत्त व्य, धम इत्यादि । जज १ 'पून यहू सवथा मसरय है कि हिसा स हिंसा शान्त हो सकती है | जप दुनिया में सव हिसा बचाव वी हिंसा है। प्राक्रमण वी हिंसा में गहरे जाबर देखें तो पता चलेगा कि वहा भी प्रपनापन ही मुझ्य हे। दूसरे को सताना मुख्य नहीं है। स्वत्वाभाव की रक्षा या प्रतिष्ठा की कल्पना मे से ही परहत्या की याति पाक्रमण की तयारी झाती है । डा १७- सम्पूणतता को परमात्मा कहो । उसका भज्ञेय भाग सत्य है | प्राप्त सत्य भ्रहिंसा है। मानव चू कि प्रपूणा है इससे उसवा समाजिक धम भहिसा ही है। युद भहिसा/२१




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