भारतीय संस्कृति के आधार - स्तम्भ | Bharatiya Sanskriti Ke Aadhar Stambh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वर्धभान महावीर
न त्वहूं फामये राज्य न स्वग ना5पुनरभवम् ।
कामये द्रुसतप्ताता प्राणितामाति नाशनस ॥
“मुझे राज्य, स्वग और मोक्ष नहीं चाहिए। मैं चाहवा हूँ कि
दुखित प्राणिमा के कष्टा को समाप्त कर मै उह सुख प्रदात कर सकू ।/
भारतीय सस्दृति वी उल्लेखनीय विशपता है सहिष्णुता ॥ इस
विशेषता के कारण ही वेदोपनिपदो व॑ अध्यात्मवाद स लेकर चार्वाक मत
के प्रद्नितिवाद तक सभी प्रवार की विचारधाराओं को इस धरती पर
पूष्पित और पल्लवित हाने का अवसर मिला। चितत और साधना के
क्षेत्र मे,बिचार स्वातञ्य का जो उमुक्त वातावरण प्राचीनकाल से ही
यहा चला आया है, वेसा वातावरण विश्व के किसी देश मे उपलब्ध
नहीं हो सका । प्राचीन ग्रीस ही ऐसा देश था जा इस का अपवाद था।
अयथा विचारों की स्वतबता भारत के अतिरिक्त कही भी दृष्टिगोचर
नहीं होती । विचार और मत-स्वततता थे! फत्रस्वकूप भारतवष में
ऋणवदक्गलीन यज्ञ-अनुष्ठानो के आरम्भिक दौर वे बाद यहा वी उपनिपदो
वी महती अध्यात्मवादी चितनघारा ने चितवा और मनीपियो की वौद्धिक
क्षमताओं को विविध आयाम प्रदान क्यि । तत्पश्चात चराचर विश्व के
सम्बध्च मे विविध स्थापनाओ के भ्रस्वोत्ता छह दशनाों का अभ्युदय हुआ |
इसी क्षम में जहाँ आमा, परमात्मा जौर अचेतन से सवद्ध वेदिवा
आध्यात्मिक परम्पराए विकसित हुईं, वहाँ वैदिक्मत से मतभेद रखने वाले
मतलतान्तरी का भी अभ्युदय और विकास हुआ । ये मत दो प्रकार के थे
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