प्रेम कहानी | Prem Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बह रंग कहां, जो अपने वृन्दावन में बांकेबिहारीजी के मन्दिर की रासलीला में होता है।' “अपनी-अपनी खिचड़ी सभी को सौंधी लगती है,' मैंने कहा । लेकिन मैं तो पंजाब की खिचड़ी मे शामिल थी ।' सच तो यह है यज्ञा, कि घर से दूर, दिमागी तौर पर अब नतो हमारा कोई प्रान्त बचा है, न धर्म । छात्रों की जाति भी अन्तराष्ट्रीय जाति होती है । हां और सुना तेरे आशिक की कया खबर है? अभी तुर्भे लिखता है या कोई मेम-वेम दूढकर ठण्डा हो गया है! ' 'मत पूछ जया, हाल दिले-दीवाने का ! लौटकर आई तो तीन खत मिले उसके । देख, कितने डालर का तो डाका-टिकट लगाया है ! और यह ग्रीटिंग-कार्ड **०! एकदम लाल रंग का लम्बा-सा कार्ड था, उसके अन्दर एक नन्ही-सी हरी रबड़ की बोतल चिपकी हुई थी । नीचे लिखा था, 'दिस माइट सर्वे यू इन माय एब्सेन्स' (मेरी गैरहाजिरी में शायद इससे तुम्हारा काम चल जाए) गजब दरारत थी । दाब्दो-ही-शब्दों मे उसने यज्ञा को सितार-सा भनभता डाला था। उसके चेहरे पर आरोह-अवरोह दोनो थे । मुहम्भद ने यशञा को अपना चित्र भी भेजा था | पारिवारिक चित्र था वह्‌। टी० वी० के इदं-गिदं सभी बैठे हुए थे, उसकी बहन फरीदा, मां और छोटे भाई-बहन । वाकई मुहम्मद चित्र में बेहद हसीन और जहीन लग रहा था। रंगीन फोटो मे लाल टी-शर्ट उसके कसे बदन पर खूब फब रहाथा। वह तो बिल्कुल स्पोर्ट्टमेन लग रहा था । कौन कह सकता था कि यह लडका इतने शायराना खत लिख सकता है । यंश्षा कहने लगी, “इसकी आंखें देख, कील-समन्दर सब भूल जाएगी ।* मैंने फिर से देखा । वाकई मुहम्मद की आंखें एक ख्वाव थी। इतनी कशिश, इतनी गहराई, इतना रंग-राग उत आंखों में था, सागर में सुराही का असर। यशा बोली, 'जब से फोटो मिली है न, मै सोई नही हूं | जाने कितने प्रेम कहानी / 27




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