महा वाक्य | Maha Vakya

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Maha Vakya by स्वामी योगानन्द - Swami Yogannd

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १७ ] ओर अन्न की एक कोठी देने को कबूल कराया। दोनों अन्न ओर सौ सुबर्ण की मुद्रा ले आये | हज्जाम ने उनके शिर के वालों को लेकर अपने पास रख . लिया | जब २ दृज्जाम को जरूरत होती है तब २ वालों के जरिये से प्रेतों को घुला लेता है.और अपना कार्य करा लेता है। इस प्रकार आज तक वे हण्जाम के किंकर बने हुए हैं । प्रेत सच्चे द्वोते हैं या भूठे इससे हमको प्रयोजन नहीं है। ऊपर का दृष्टांत यह समभने के लिये है;--भ्रेत सामथ्यंवान होने से आत्मा सममो, हज्जाम चालवाजी वाला अज्ञान--माया है। आईना उसकी विक्ृति है यानी अज्ञान का कार्य 'रूप--अज्ञान से वना हुआ सतोगुणी होने से निमंल अंतःकरण आईना हैं, उसमें प्रेत रूप आत्मा के प्रतिविम्ब से आत्मा भय को श्राप्त हो कर अपने दी प्रतिविम्व को दूसरा समझ कर अपनी रक्षा का यत्न करेने लगा है और उस यत्न में अज्ञान रूप हब्जाम का इमेशा के लिये किंकेर बना है । इसी अ्रकार जीव का ख़रूप सम- मना चाहिये । प्रेत का मामा कुछ सामथ्य वाला मा्मं हुआ परन्तु अज्ञान के सामने जाते द्वी वह भी किंकर वन गया | इस प्रकार जाग्रतू और खप्न दो अवशस्थाओं में जीव माया का दास रहता है ओर तीसरी कारण अवस्था तो दासत्व रद्दित होने पर भी अज्ञान में दवी हुई है। ु मनुष्य:--आपके समझाने से में जीव को समझ गया हूं परन्तु का शाक्षों में जीव के खरूप में भिन्नता किस कारण




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