मणि रत्न माला (प्रश्नोत्तरी ) | Mani Ratna Mala (prashnottari)

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Mani Ratna Mala (prashnottari) by स्वामी योगानन्द - Swami Yogannd

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७. जिस ाधिछ्ान में दृश्य न्रह्मांड अष्यस्त है वह विश्वेश हैं। जो जगनू को. चैतन्य भाव से वनाने वाला हैः वह निमित्त और जिसः मायिक. विशेष अंश से जगत वना है वह उपादान है। इस प्रकार दोनों कारण जिस एक में. हैं वद विश्वेश है। अधिकारी के भेद से समभाने के लिये. कारण ब्रा्म और कार्य ब्रह्म दो प्रकार का. न्रह्म कद्दा हैं इन्हीं को विगुंण और सशुण ब्रह्म भीःकहते हैं. । विश्वेश पद का- झर्थ दो प्रकार के- अधिकारी भेद होते हुए भी नम ही करना चाहिये । कमल. सूर्योदय में विकसित होता है और सूर्यास्त में मुँद जाता है इसलिये विश्वेश के पद को कमल की उपमा देकर यह सिद्ध किया है कि उसमें सष्टि का दृश्य गौर लय दोनों होते हैं दृश्य और लय विश्वेश के पाद हैं। पाद कहने से मात्र पैरों का ही अर्थ नहीं है। जैसे शरीर का एक किंचित्‌ अंश. पैर होते हैं इसी प्रकार विश्वेश के किंचित्‌ अंश में जगन्‌ की स्थिति और लय हैं । झंश अंशी भाव ब्रह्म में नहीं है । मायिक तुच्छता समभकाने के लिये अंश अंशी भाव कहा है। कारण ब्रह्म जगत्‌ से सम्बन्ध चाला नहीं है और कार्य त्रह्म साया सदित समभाने के लिये कहा है चह्द भी सम्बन्ध वाला नहीं है । जैसे रफटिक के ऊपर रक्‍्खे हुए गुडहर के. पुष्पों से लाल दीखने लगता है ऐसा दीखने वाला कार्य न्रह्म है । परत्रह्म के पेर आदिक ंश नहीं हैं परन्तु नू पैर वाला होकर पूछ रहा है इसलिये पैर वाला कह कर तुमे समकाया जाता है वह तेरे समान शरीर वाला नहीं हे । शरीरधारी को देहाध्यास तीन्न होता है उस जैसों को सब त्रह्मांड ईश्वर का शरीर है-बैराद शरीर है उपासदा के




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