महाभारत भाग 2 | Mahabharat Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
86 MB
कुल पष्ठ :
1076
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीमंमाहरिशी कृष्णा द्वैपायन वेदव्यास - Shrimanmaharsi Krishna Dwaipayan Vedavyas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भसोष्सपर्व्य ।
जिनका शर दांतके समान, जिनका शरासन
बाये हुए सु हके समान, खड़ ग जोसके सम्रान,
और जो कमी पराजित बहीं हुए वच्ध इस
प्रकारके सीषणरूप वाले, शुद्धमें भारेंजानेकी
अयोग्य लब्जाशीौल, सहानुभाव, सौषण रूप थे
उन अजित एरुपव्याप्रकी किस प्रकारसे कुन्तीौ-
एतलोग लड़ाईमें मारसके ? जो प्रधान रथसें
बैठकर शरसमूइसे शक्रोंके मस्तक ऋ]तैले थे,
और पाण्डवोंकी वड़ो सेना जिन डपग्रचन्वा,
उग्रटरवाणकोी कामसें लानेवाले दुवं षे पुरुषको
लड़ाईमें देखकर सब चण कालासिके समान
जानकर होशियार रहती थो, वच्ध दश दिनतक
दृश्मनकी सेनाकी परिकषण करके विनष्ट
हो गये। स आ्की समान अत्यन्त दुःसाध्य काम
करके अस्त हो गये है । इन्ट्रके समान अच्चय
“शरजालकी बर्षा करके दश दिनमें अबुद
असख्य योजाओंकी जिन्होंने सारा है, सो
आज लड्डाईसें निहत होकर वायुसे भकोरे
पैड़की समान एथ्वीमें 'पड़े हैं। उन भारत-
कुलचूड़ामणिके ऊपर ऐसी दुघटना होनेका
कारण एक मात भेरो दुर्सन्तंणा हो है।
है सच्चय। शात्ततुके पुत्र बड़े पराक्रम-
वाले, उन मोष्सको देखकर वहां पाणड्वसेना
किस प्रकार प्रहार करने लगी? पाण्ज्व क्री
लोग सौषसके साथ लडाई करने लगे ? आचा-
व ट्रोणके जीते रहनेपर सो भौषस क्यों नहों
विजयो हुए ? और ट्रोणर्क बैठे ओर कृपकी
ससोप रहतेपर सौ प्रहारकोंमें प्रधान सीषुम
क्यों सारे गये ? जिन्दें देवता सी नहीं इरा
सके उन अतिरथ सोषसको किस तरहसे
पाश्चात्य शिखरडोने बुद्धमें सारा ? जो लड़ाईसें,
चड़े बलवान जाम्नदसप्र रामके ऊपर मी सर्दा
कर सके थे और जिनको परशरास सी जीत नहीं
एुर्क थे महारथोंके कुलसें जन्म लिये छ॒ए इन्ट्रके
सम्तान पराक्रसवाले उस वोरएरुघत्ते लडाईसें
हारनेका सत्र समाचार आप सुर्से कहिये।
केकनकक बनती“
१३२७
क्यों कि जबतक मैं वह नहीं सनू गा तबतक
मेरा चित्त स्थिर नहों होगा।
है सच्छ्य । मेरे पच्चके किसी सहाधनुद्ध र
ने तो उन अटल बोरको परिवत्याग नहों
किया ? दुर््योधनकी आज्ञासे किसी वौरहोने
उनको तो जा नहों घेरा था? है सच्छय |
जब सब पाण्डव लोगोंने शिखण्डोकी आगे
करके भीष्स पर आक्रमण किया था, तब कुस-
वोरोंने तो उन अटल वोरकी छोड़ नहीं दिया
था ? जिनके घनुषका टच्नार बजनादके समान
जिनका वाण बौछार जलबिन्दके समान, और
जिनकी सौोवोधोषा गज्जनके समान ऐसे बड़े
मेघके समान जिस वीरने , जेसे इन्द्र वजसें
दानवोंके दलका नाश करते हैं, बसे, पाञ्ञाल
ओर रूपच्लय आदि सह्चित पाण्डवोंके महार-
थोंको वार्णोंकी वर्षा करके मार इटाया था ?
और जो बड़े वेगसे जानेवाले वाणोंके भयानक
ससुद्रमें वाणा जल-जन्तुके समान और घनुषकी
डोरीकी फटकार लक्तरके समान छई थो,
ओर जिससे पार उतरनेके लिये न कोई दौोप
अर नाव थो, जिसमे गदा ओर प्रस्त ही
सावो मकरोंके घर थे, जिससें घीड़े मानो
आवत्त के समान हाथियोंसे समाकुल, पेदल
सेना सतलीके समान दुरासद और चअजन्तोभ्य,
ओर जिसका शब्द शद् और दुन्ट्सोके समान
होता था, और जिस सागरमें बछ्धतसे
हाथी, घोड़े, पेदट्त और रथ छूव जाते थे
ओर क्रोच-खरस्ूप बाड़वानलम जल जाते थे;--
उन्दी वोर शक्रचन्ता, शक्रतापन भीज़रूप
महाअस्त॒ सागरका, जैसे ससुद्रके तरंगकों
ससुद्ध किनार को भूमि रोकतो है वैसे किसी
योघाने अवरोध किया था? ह्लनैे सत्य!
जब दुश्सनोंकी मसारनेवाले भीष्म टुय्थोचनके
निसित्त लड़ाई करने गये घे तव कौन
कौन उनके सासने आये थे? उन असित
तेजखी मौफ़के दाहिने चक्रकी किसने
User Reviews
No Reviews | Add Yours...