गद्य - लेखक रामचन्द्र शुक्ल | Gadya - Lekhak Ramachandra Shukl

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Gadya - Lekhak Ramachandra Shukl by बलदेव करण शास्त्री - Baladev Karan Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) बुष्त्यों के दर्शमकास में हम एक मजुर सावता कौ पनुमूति करते हैं भौर यह क्षाम्प में प्रसिद्ध रसारमक भनुभूति सं किसी मी रूप मे कम गही है । धुक्सबी को प्रपने इस प्रहूंठि प्रम पर बड़ा गर्ष है। मूस्यु के कुछ ही दिस पूर्व मिर्जा पुर के कबि-सम्मेशन में उतका यह मर्ण इस शम्दो में साकार हो पया था: मैं मिर्जापुर को एक-पुक स्घड़ी एक-एक टीसे से परिथित हूँ ! उसके टीलो पर चढ़ा हूँ । बचपन मेरा इन्ही स्घड़िया की छाया मे पल्ा है। मैं इसे कैसे भूत सकता हूं । सोरयों की प्रश्तिम कामना रहती है कि ब काप्ली में मो शाम करें, किन्तु मेरी भस्तिम कामना मही है कि प्रम्तिम समय मेरे सामते मिर्मापुर का बही प्रकृति का दिश्प क्षष्श हो लो मेरे मत में भीतर-बाहुर अधा हुप्ा है।” उक्त विवेशन के माध्मम से हमसे घुक्सजी के निजी स्पक्तित्य के चित्र ढी रेश्ा्भों को भ्रभिक स्पप्ट करत का उपक्रम किया है। उनका यह तिजी ध्यक्तित्व हमारे शिए प्रत्यन्त उपादेय हैं। श्सी के आभार पर हम उनके साहिए्पिक ध्यविंतत्व क मर्म को हृदयंगम करने में समर्थ हो सकगे | शृक्‍्सजी कौ गम्मी रता प्रभ्पमगध्तीशता तथा भम्तु प्टि ने साहित्यिक भ्षेत्र में उस्हें मंश्ातिफ दृष्टि प्रदात की है। उसकी व्याक्ष्यात्मक प्रजृति इस्हीं यु्नों का कपास्तर है। उनकी इट्तियों में बर्गीकरण की प्रबूत्ति का दुशनारमक वृष्टि कोण का ऋमबद़॒ता तथा भर्विति का समाप्त इसी भूस प्रवृति के कारण से हुप्ा है। उसक्रौ समामिकठा सकोइपीक्रता पा सात्बिकता ने ऊर्म्े नीतिबादौ पव मूक््यबादी बनस की प्रेरणा दी है । उनके बौद्धिब' प्रयासों के बिस्तत प्रभात लेयों के भीरस लत गो सरस धुरम्य एवं वित्ताक्ष्पक बताने में उसकी दिपम जीबमस-परिस्थितियों में दबो पड़ी हस्प-श्पम्प दृत्ति बे उस्सल भीय सहायता कौ है। यहि उसकी इृषियों में भारतीय जीवस की भारतीय छिदान्यों की भारतीय एय॑ घास्जीय भक्ति की भारतीय काध्य परम्प ा्प्रों की प्रश्ता मिल्रती है तो उसका श्र उसकी प्रात्म-सम्मान की गृति को दिया जा सक्रया है। उमा प्रद्॒ति प्रम मो घम्प है जिसने उन्हें सक्ष्चा दए भक्त तथा भारतीय परम्पराध्ों का भवुरायी बता दिया है। पारच/तव




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