बारस अणुवेक्खा की सरल हिन्दी भाषा टीका | Baras Anuvekkha Ki Saral Hindi Bhasha Tika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कितनी और केरी २ अवस्थायें होती हैं| कर्मोद्यानुसार कभी सुख होता
हैं तो कमी हुःल्ल | जिनके आज पुणय के उदय से सुख की सामग्री--धन,
सम्पदा, निरोगता, सन््तान आदि दिखाई पड़ती है कल्ल थे ही पुणय कर्म
के क्षय हो जाने पर इ्ट वियोग तथा अनिष्ट संयोग के कारण रोते, हाहा-
कार करते, बिलाप करते दिखाई देते हैं | ऐसी दशा जब संसार की है तो
फिर किसको अपना समझे, किससे प्रीति करें, शरीर से क्या मतलब करें,
यह हमें एक दिन अवश्य छोड जावेगा। इसकी दशा कच्चे घडे, की-सी
है---ज्ञरा सा निमित्त मिलने पर उसके दूठने था गल जाने का भय लगा
रहता है | ऐसे ही जो शरीर, इग्द्रियों के स्वरूप को नहीं सममभते उन्हें
इनके नाश का भय लगा रहता है । यह उनकी भूल है। शरीर और
इनिद्रियों को नाशवान अनित्य जान इनसे अपने/आत्म कल्याण का साधन
करना चाहिये | इन पर अमभिमान क्या करें !
अहमेन्द्रपद, घलमद्र, नारायण, चक्रवर्ती की पर्याय भी क्षण भंगुर
है, सदा बनी रहने वाली नहीं है। जब तक पुण्य कर्म का उदय है यह
विभव वना रहता है, आयु के पूर्ण हो लेने पर वह भी दूसरे शरीर को
धारण कर लेते हैं । ज्ञानी पुरुषों की चृष्टि मं सांसारिक जीवों को सब ही
पर्यायें-क्या ऊंची और क्या मीची--नाशवंत हैं, अबथिर हैं। इन
ज्ञण भंगर बिजली के चमत्कारवत् तथा जल के बुदब॒ुदे सरीखी शीघ्र -ही
नाश को प्राप्त हो जाने बाली पर्यायों तथा दशाओं के पीछे क्या भाग-
दौड़ करनी ? इनसे उदासीन हो जो स्थायी है, जो हमारी अपनी वस्तु हे,
जिसमें न जन्म है न मरण है केबल उसको प्राप्त करने का ही प्रयत्न
करना योग्य है |
जीव कां और शरीर का घनिष्ट सम्बन्ध होता है, दोनों ऐसे ए
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