महाभारत हरिवंश - पूर्वार्ध | Mahabharat Harivansh - Purvardh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
1680
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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६ ( १८). $# महदाभारत-इहरिवेशमाहात्म्म # | पौधा
1 जनिवतने 1 ११ ॥ यथाएखं व्यवहरेन्नित्य विष्णुपरायण+ ।
ञ शुचिः शुद्धमनार्ितिष्ठन् पत्रावर्ल्या च भोजनम् ै( १२॥) कया
: समाप्त भक्ति च कुर्यान्तित्यं कथाव्रती । द्विदुलं मथु तेल च
१ गरिष्ान्ने तमैव च ॥१३॥ भावदुएं पयु पित॑ जह्यान्तित्ये कथा-
६ आती । हंताक च कर्िंग च दस्धमन्न मसूरिफाम् ॥१७8॥ निष्पा-
च बर्जयेध्च फथावती । पलांदु लशुनं हिंगं मृलक
गंजन तथा १४ ॥ नालिकारूल कृष्पांडं नैगाद्राच्च कथा-
बती | काम क्रोध मद मान मत्सरं लाभमेव च ॥ १६ ॥ दंभे
मेह तथा द्वेप दरयेच कथाजती । वेदसेप्णवविश्ा्णा शुसगोत्न-
तिनां तथा 1 १७ ॥ स्त्रीराजमद॒ता निन््दां वर्जयेच्च, कथावती।
छुखपूर्वक् शयन फरे, पार्पोको दर करनेके लिये ( श्रोताकों )
नियम आदि करने चाहिये ॥ १०-११ ॥ विष्णुगें परायएण
रहने वाला महुष्य जिसमें सुख मिले उस प्रकार बर्ताव करे,
आर पवित्र होकर शुद्ध मनसे पत्तत पर भोजन जीमें॥ १२ ॥
अतथारी मनुष्य कथा समाप्त होने पर भोजन करे, कथाका बत
धारण करने वाला मनुष्प द्विल ( चना आदि ) मधु तेल,
गरिए झज्नको, छोर भाजरूपित अन्नको, आथोर् किएको, देखफर
वित्तके घिन लगे इस अन्नफों और वासी अन्नको न खाय,
कयाका बत धारण फरने वाला मनुष्य बेंगन सिरस जला
हुभा अन्न मसूर भेंटदास और मांसमय भोजनको त्याग देय,
आर कथयाका बत धारण करने वाला मनुष्य प्याज रदसन हींग
गाजर नालिकामूल ( शाकृषिशेप ) और पेठेको न खाय और
कथाव्रत्ती मनुष्य काम क्रोध ल्लोभ मोह मद मान मत्सर और
दंभको द्र करदे, और कूथाइदीपुरुष देदू वेप्णद भ्राझ्मण
है घती गोत्ती स्त्री राज्य और उदार पुरुषोकी निम्दा करना
६ स्पाग दे, और फवाबनती घुरुष रनस्वला स्त्री स्लेच्छफों स्त्री
शश्कशआकापज्थशचाक अं चका फ पात भा रहा एक ए प्यातफ आकर प पक प पक फ पका ज पाक धन आाका-क पाए
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