शब्दों के पींजरे में | Shabdon Ke Pinjare Men

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Shabdon Ke Pinjare Men by असीम कुमार रॉय - Aseem Kumar Roy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“कब फ़रेबी कहिए या जो कहिए, पर अच्छे आदमियों से संसार नहीं चलता । पॉलिटिक्स की बात छोड़िएं। आप अगर निपट भछे आदमी हों तो देखिएगा, घर के नोकर से लेकर पललो तक कोई भी अपके वह में नही ॥!” “किसने कहा आपसे मैं तिपट भा आदमी हैं? मैं भी मक्‍्कारी करना चाहता हूँ । मगर हिम्मत नही हो पाती,” निर्मछ हंस पड़ा 1 “बया पता साहब, आप ठीक कह रहे हैं या मखौछ कर रहे हैँ । लेकिन भछे जादमी या परागछ नहीं, तो गंगा किनारे अकेडे इतने दिन कैसे गुजार दिये! माल्कि ने जब यह बागमहछ खरीदा तो मेरी राय नही थी 1 मैंने कहा था, यह सव पुराने झमाने का रवैया हैं। अब छुट्टियों में कश्मीर जाइए, पहलगाँव में कॉडेज लोजिए । मगर मुश्किल तो यह हैँ कि पुराने खयाऊों की जठाएँ अभी भी ही सोली जा पा रही 1! निर्मल ने पहले भी यह गौर किया है। भवेन अफसर कहता है, आपके ताऊजी को यह कहा, वह कहा । लेकिन जो कहना चाहिए था, वह नही कहा; वही बाद में छोगों को किस्सों में सुनाता हैं। उसके ताऊजो जरूर ही इतना उपदेश बरदाइत नही करते । कितनी हो बार निर्मल ने देखा है, वह बीच में ही फूंक से भवेन के उत्साह को बुझा देते हैं । “आप यह सोच रहे है न, मैंने यह सब नही कहा हैं, कहने की जुरअत नहीं है,” मन्दिग्ध दृष्टि से भवेन ने निर्मल को देखा 1 “दुर्‌, मैं आपके बारे में सोच ही नही रहा । यू आर वण्डरफुल ) ताऊजी वाब आ रहे है ?” कर छ्ह ठीक जो गोचा गया था, यद्दी हुआ | प्रवोधसेन ने कमरे में आते ही भौँहें गिकोडी। जरूर यह भवेन की हरकत है। यह भवेन गेंवई का गेंवई रह गया, बहुकर स्नेह से वह अपने चेहरे की ओर ताकने छगे । उसके बाद होंठों के दोनों कोनों में हँसी की रेसा निलास्कर बोले, “जो भी कहो, वैसा दाम्मिक चेहरा मेरा नही है | है है /दाम्भिक वयों होने छगे ? यही तो व्यक्तित्व है। आप जिसे ढेंकते छूँते है, * चित्र में बही उभर आया है ।” भवेन ने कहा । है शब्दों के पीजरे में




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