छितवन की छांह | Chhitawan Ki Chhanh

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Book Image : छितवन की छांह  - Chhitawan Ki Chhanh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छितवन की छाँह २५ दोनों है, आँख-मिचौनी की दौड़-धूप और उसकी मीठी थकान । यही उसकी पूर्णता है । यह तो छितवन के बारे में अपने मस्तमौला लोगों की बात हुई जिन्हें 'माँगि के खाइबौ मसीत को सोइबौ, लेबे को एक न देबे को दोऊ' का परम निरिचिन्त जीवन बिताते हुए समस्त जगत्‌ के ऐश्वयं को लात मारना है, पर कुछ लोक के मन की भी बात सुनी जाय। लोक में छितवन के बारे में प्रसिद्धि हँ कि इसकी छाया में जाते ही आदमी के सब पुण्य खतम हो जाते हैं, इसीलिए इसे कोई लगाता नहीं । यह अपने आप धरती फोड़कर छितरा कर इतराता हैं। उस लोक के हैं भी यही अन्‌रूप, जिस में दिए की वत्ती बुझायी' नहीं जाती 'बढ़ायी' जाती है, जहाँ मृत्यु-तिथि को पृण्य-तिथि कहा जाता है जहाँ विपत्ति सिर पर रहती भी है तो ग्रहों के ऊपर दोष मढ़ा जाता है तथा जहाँ अमंगल को स्वप्न में भी स्थान नहीं मिलता हैं और दिन-रात मंगल का ही गान होता रहता है.....जब कि ठीक इसके विपरीत मंगल की छाती पर चौबीसों घंटे अमंगल सवार रहा करता ह । वहाँ परममंगल के महासाधक योगीग्वर शिव नहीं न्यौते जाते, विष्तननायक गणेश की वन्दता पहले होती है, वहाँ नि:श्रेयस-पथ के पथिक संन्‍्यासी का दर्शन अशुभ, और पाप की ती्थयात्रिणी शुभदर्शन मानी जाती है । छोग आपात मंगल के आगे कुछ सोच नहीं पाते, वयोंकि परम मंगल तक पहुँचने के लिए बीच में अमंगल का गहन जंगल पड़ता है । उममें पैठने का लोगों में साहस ही नहीं होता । अब इनके लिए कोई क्या करे ? हम तो ठहरे इमशान-साधना के कापालिक, हम अमंगल के शव की छाती पर बैठ कर उसे शिव में परिवर्तित करने का संकल्प छेके आये, हम जानते हैं कि पृथ्वी पर यौवन विनाश के असंख्य छिद्र लेकर आता है दुर्वेखताओं की न्‍ आँधषी लेकर आता है, लेकिन साथ ही जल-प्रपात का उद्ाम महावेग भी । हम जानते हें कि इस यौवन की बुराई करते-करते नीतिकारों का ताल सूख गया है। हम जानते हे कि अनुभव का लम्बा मुंह छटकाए बहुत से छोग अपनी भूलों की गाथा से हमे चेतावनी दे ने लगेंगे। परन्तु हम विवश हें, पृण्य का क्षय हो जाय, हम तो छितवन की छाँह को पुण्य से भी महान्‌ मानते हैं।




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