विधि मार्ग प्रपा नाम सुविहित सामाचारी | Vidhi Marg Prapa Naam Suvihit Samachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ढ संक्षिप्त जीवन-चरित्र 1 ७ सं० १३११ के दारुण दुर्निकमें जीवन निर्वाहके किये जाजओ नामक सूत्रवार कब्राणयसे सुमिक्ष देशकी ओर -चछा। प्रथम श्रयाण थोड़ा दी करना चाहियें यह विचार कर उसने रात्रिनिवास “कयबास स्थठमें किया | अर्दराजिके समय उससे खप्तमें देवताने कह्य-“तुम जहां सोयें हो उसके कितनेक ' हाय नीचे प्रमु महावीरकी ग्रतिमा है | तुम उसे प्रकद करो ता कि तुम्हें देशान्तर न जाना पड़े और यहीं निर्वाह हो जाय ! संश्रम पूर्वक जग कर देवकथित स्थानकों अपने पुन्रादिसे ख़ुदवाने पर ग्रतिमा प्रकट हुई। यह शुभ सूचना उसने श्रावकोंको दी । उन्होंने महोत्सवके साथ मन्दिरजीमें प्रतिमाको स्थापित की और सूत्रधारकी आजीविका बांध दी | एक बार न्हववणकरानेके पश्चात्‌ प्रभुविंव पर पसीना आता दिखाई दिया । बार-बार पौंछने पर मी अविरठ गतिसे पसीना आता रहा | इससे आवकोंने मावी अमंगठ जाना | इतने ही में प्रभावके समय जेहुय छोगेंकी धाड आई। उन्होंने नगर्को चारों तरफ्से नष्ट किया । इस प्रकार प्रकट प्रभाव वाले महावीर भगवान, सं० १३८० तक “कर्यवास स्थक में ्रावकों द्वारा पूजे गये | इसके बादका चृत्तान्त ऊपर आ ही चुका है | कन्पानयन स्थान निणेय-- पं० छाठ्चंद भगवानदासका मत है कि उपर्युक्त कन्नाणय या कन्यानयन वर्तमान कानानूर्‌ है। पर हमारे विचारसे यह ठीक नहीं है। क्‍यों कि उपयुक्त वर्णन, सं० १२४८ में उधर तु्कोंका राज्य होना लिखा है; किन्तु उस समय दक्षिण देशके फानानरमें तुकोंका राज्य होना अप्रमाणित है। शुगप्रधानाचार्यगुबाबली” में (जो कि श्री जिनविजयजी द्वारा सम्पादित हो कर “सिंधी जैन ग्रन्यमादाः में प्रकाशित होने वाी है) कन्यानयनका कई खोंमिं उछेख आता है| उससे मी कन्नाणय, आसी नगर ( हांसी ) के निकट, बागड़ देशमें होना सिद्ध है। जिस कन्यानयनीय महावीर प्रतिमाके सम्बन्ध में ऊपर उछेख आया है. उसकी प्रतिष्ठाके विपयमें मी गुवाबडीमें लिखा है कि-सं० १२३३ के ष्येष्ठ मुदि ३ को, आशिकार्मे बहुतसे उत्सव समारोह होनेके पश्चात्‌, आपाढ महीनेमें कन्यानयनके जिनाढयरमें श्रीजिनपति सूरिजीने अपने पितृव्य सा० मानदेव कारित महावीर विंबकी प्रतिष्ठा की और ब्याप्रपुरमें पार्श्रदेवगणिको दीक्षा दी। कल्यानयनके सम्बन्धमें सुर्वावडीके अन्य उछेख इस प्रकार हैं - संबद्‌ १३३४० में श्रीजिनचन्द्र सूरिजीकी अध्यक्षतामं कन्यानयन निवासी श्रीमाल ज्ञातीय सा० काडाने नागौरसे . श्रीफटौधी पार्श्वनाथजीका संघ निकाछा, जिसमें कन्यानयनादि समप्र बागड़ देश व सपादठक्ष देशका संघ सम्मिलित हुआ था । संवत्‌ १३७५ माघ सुदि १२ के दिन, नागौरमें अनेक उत्सबोंके साथ श्रीजिनकुशछ सूरिजीके वधाचनाचार्य-पदके अवसर पर, संघके एकत्र होनेका जहां वर्णन आता है वहां “श्रीकन्यानयन, श्रीआशिका, श्रीनरमठ प्रमुख नाना नगर ग्राम वास्तत्य सकछ वागड़ देश समुदाय” लिखा है| संबत्‌ १३७५० वैज्ञाख बदि ८ को, मप्रिदलीय दकुर अचलसिंहने छुडतान कुतुबुद्दीनके फरमान से हस्तिनापुर और मथुराके लिये नागौरसे संघ निकाठा | उस समय, थ्रीनागपुर, रुणा, कोसवाणा, भेड़ता, फडुयारी, नवहा, झंक्षण, नरभठ, कन्यानयन, आसिकाउर, रोहद, योगिनीपुर, धामइना, जमुनापार आदि नाना स्थार्नेका संघ सम्मिलित हुआ छिखा है ] संघने क्रमशः चलते हुए नरमठमें श्रीजिनदत्तसूरि-प्रतिष्ठित श्रीपाश्धनाय मद्गतीर्षकी वन्‍्दना की | फिर समस्त बागड़ देशके मनोरय पूर्ण करते हुए कन्यानयनमें आरीमद्यवीर मगवानकी यात्रा की |




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