अरी ओ करुणा प्रभामय | Ari O Karuna Prabhamay

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Ari O Karuna Prabhamay by अज्ञेय - Agyey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नये कवि से आ, तू आ, हाँ, आ, मेरे पैरों की छाप-छाप पर रखता पैर, मिठता उसे, मुझे मुँह भर-भर गाली देता-- आ, तू आ। तेरा कहना है ठीक जिघर मै चला नहीं वह पथ था भेरा आग्रह भी नहीं रहा मै चढूँ उसी पर सदा जिसे पथ कहा गया, जो इतने इतने पेरो द्वारा रौदा जाता रहा कि उस पर कोई छाप नहीं पहचानी जा सकती थी | मेरी खोज नहीं थी उस मिट्टी की जिस को जय चाहूँ मे रोढं, मेरी ओखें उलझी था उस तेजोमय प्रभा-पुत्र से जिस से झरता कण-कण उस मिट्टी को कर देता था कभी स्वण तो कमी शस्य, कभी जीव तो कमी जीव्य, अनुक्षण नय-नय अकुर-स्फोटित, नय-रूपायित । अरी भो करुणा प्रमामय ञ्‌७




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