वधदीपक | Vadhdeepak

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Vadhdeepak by अज्ञेय - Agyey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनचरित्र- १३ वृण पताका सूर्य पताका आदि १५ य॑त्र और जैनाम्ायके रोग मिठाणेके सो मेत्रविधि मेत परतवाणे मये वताये सो सव सल फल्द थे वो फेर सिद्धगिरी गरिरनार यात्रा कर कनेर परि हमारे रिष्य भीमाटी आाह्मनकूं दीक्षा जा करदी वाद हूंढक मत पराख टक गुजराती छापेका एक जेठा कच्छी श्रावकने भेट की वंसीधरलालाने भज्ञान तिमर নাজ और आर्य देशविवस्था भेट की इन तीनोंके पढणेसें वेदशास॒ व्यवखा जोर यानंदजीका छद्न इत्यादिमें वहोत वाकब हुवा साठ छयालीसमें गोविंद्दाश सराब- ী্ষা হভাজ জী উহ गया पीछा जब जाया तव जार्यासमाजी वाशेशरानंदकी सभा [६ केइयक आ्ह्मन विद्यन चर्चामें साक्षी थे नियम था ना जवाब होय सो पर्म छोटे जीन दिन वडी चचीमें खंडन मंडन विषय बहोत चठा आखिर सब जुवावोंकी विनय कर श्रीनेमचंदजी जैपुरवालोंके समक्ष १० जती और छया लीसकी जाखा तीजदू शिष्य हमारा जती बणाया सभानें तथा शिप्यने युक्ति वारिषिः पद लिखा मुंरमें श्रीपर शिवलालसें विक्रियान २५ रुपे सरकडे कमीसनसे व्याकरण काव्य कोश वेदांत न्याव चद्‌ अलंकार नाटक ज्योतिष वैधक भारत वाल्मीक संग्रदायोंके अनेक शास कमीशन हास बचचणे लगा भर वांचते रहता दो वर्षमें अन्य मतांतरीयोंके पीराणादिक अनेक एोक्त शाम्रोंके रहस्यका जांणकार होगया लक्ष्मणमट्डकों मेंनें वडे कष्टसे बचाया ঘা वो श्रीरा- भपंडित निजाम सरकारका पांचसे रुपे मासिक पगार पाणेवालेकों बेद पटाया करता उसके भाइका जीगैज्वर उपद्रव संयुक्त मेंनें इलाज किया आमदरफतसे जमनके एप वेद्‌ साठ हजार मुझें बतलाया ध्राद्मग सिवाय वेद कमी श्राह्मन सुणना पर्या तो दूर रदा लेकिन आंखोंसें पुस्तक कभी नहीं दिखाते लेकिन संसारं धन्यः महिमा है. इस वैधविधाके उपगारकी सो वो भट्जी और पंडित श्रीशामजी अंतरंगसे सब मूठ घोर जग मुझे घतादिया जब जैनोकी वातकभी मूंपर छाते तो आछषिर उनका सथापय भान ही करणा पडता इस तरे चारही वे्दोका सात समझगेगें जाया जोर केश्यक हस्त टापवता रसायण क्रिया अनेक चाठाकोंसें बपणे जाती कायदेसें दासलऱी १ ( सप নও श्रेतांवरा ) इति वचनात्‌ सेवत सेताटीस तक वीकनिर পাটা दिखमें वियार विलेन छुछ नहीं था फकत शिसरगिरीकी यात्रा धीर्‌ झुटेय यात्रा जादि कत्यायकर्तान परम8- रोंकी उमेद किया करता द्वीसठाल जग़वालाकी सोबत दिगंवरसें समगमार चू र तत्वाय सृप्र दु पटे হী হয वातोलपर् सनातन धमव नम चना प लगी कारण दिगांपर मत विन गेनाचार्य पुर्वधारी एकका शास डिसा बया ए सनातन अतांपरोका शास पांचस धाचायोवी सम्मतीका डिश मादु दः धान भ ঘন ইট মান বাকি জার জী परि व्यर्‌ साधू जमा मये थ उति धतः वटका बंदरस्में सेताटीसका चतुर्मास কিয়া वाद्‌ ददरायार भवा (द 2




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