रत्नाकर और उनका काव्य | Ratna Kar Aur Unaka Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवनी तथा व्यक्तित्व *
हिस्दी रीति परम्परा के प्रस्तिम सहाकदि छगद्ावदास रागाकर दी० पु०
क पूषत पैझाब कू पानापत झिद्छे में सफादों ( मुझ बाम सपंइसब ) शासक
प्राम के शिबासी थे भर उनका जस्म विश्शीयास् प्रयास बैश्पों के पक परि
बार में हुआ था ।
पर्याँ से यह परिबार दिरिसी अर गया और सुगश दरशर में प्रतिष्ठित पदों
पर काम कामे शगा काह्ाम्तर में मुगल बंरा का ग्रत-प्तण हो गया तथा
केग्दीप सत्ता दुमछ होने छगी। प्रास्तीय सरकार प्रथल इसे की भौर छपयठ,
प्रणा सुर्शिदरादाद का बैसव स्पक््सायिरयों, पछाारों प्रोर सादित्यकारों को
अपनी ओर पझ्राफपिंत करते छगा। भाच्षार्य रामचनत श्री यु्ल के शब्दों में।-
विएछी आगरे झादि पदाहीं शहरों की सयृद्धि गह दो बर्ती पी और
छफ़्तऊ पटना, मुर्शिदजाद अप मई राजपातियाँ अम डटी थीं। जिस
प्रकार शजइती हुई दिश्शो होड़ कर मीर इस्णा भादि भ्रलेऊ उतदू शापर पूर्ष
दी श्रार झाते शग उसी प्रकार विल््ती के झास पास के भदुशों की दिस्वू प्यापा-
एफ सातियाँ ( प्रगरबाजे, प्र्धी झ्रादि ) आीबिका के क्षिप् लखतऊ, फैजाबाद,
प्रपाग, काशी, परना भाई पूर्दी जिलों तथा शहरों में फैलने छगीं ।'
इर्ददी प्पापर्रिफ जातियों में रप्ाऊर जा फे पूपज भी थ जो पस्नणऊ आकर
बार गए। कासतम में इसडे पर दादा सेट तुस्तारस््त प्रदुश सम्पतिशारी
दाजमाम्प हुप् ।' शाला तुर्ाराम जहाँदार शाह के दरबार में ब्यम परते थे और
कापगऊ क॑ बहुत बड़े रईस मासे जाते थे । पह्ट सदाजमी का स्पद्साथ सी करते
थे हया मदाजर्नों कै पौपरी मी थे । बाबू यो ने शिखा है 'पूऊु घार छक्तनऊझः
के एड हबाद साइब से तुशारास जी प्ले शत करोद श्पप्ते घार मांगे थ्रे1
इस चाजा का पाझम काने में झौर एपया शसाने में इबफौ सम्पत्ति पर पूछ
बहुत छा अंरा अला गपा !! यथपरि इस घटना के छारण इसकी सम्पत्ति का
एक बइुत बह भेरा अल्ा गया, फिस्तु इसके रृइ्म-सहम में अऋम्तर रद्दी भापा।
पृष्ठ बार तुलागामंडी जशादार शाइ के साप करी आए | कदाचित् झगका सम
यहाँ हम शपा अतः बे परी रहते छगे |
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