हिन्दी विश्व कोष भाग 13 | Hindi Vishv Kosh Bhag 13
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
820
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पराज़ितू--परान्तकाल - बे
“प्रराशित् ( सा पु ) रुककवच ४ एक पुबका मात्र ।
पराजित ( स|० थि० ) परा-जि कम णि ह्ञ ) छ्तपराजय,
पराभूत, विजित, परास्त, दारा.हुआ । पर्याथ--हारित,
-विज्ित भौर शिजित । .*
पराजिशु ( स*० व्वि० ) जयो, विजेता ।
पराश्ष ( म' यु० ) परान् भनज्नोति अस्ञ व्याप्े अचू । १
तंलनिष्पोड़नन््यन्त | २ फेन। ३ छुरिकादल | *
पराछ्यन ( स*० क्वो० ) पराछझ्ज देखों।
प्राण, स'* पु०) परानअण, घिच,; ततो. पत्व । १ म्राण ।
(क्लोौ०)'२ सामभोद |. श्र
प्राणलि ( स'« प्त्री० ) विताड़ न, दूराकरण, मिसरस्थानसे
रण ।
प्रराष्ठा-अम्वई परदेशक्षों प्रद्ददनगर जिलान्तगत एक
गे भोर नगर!
पएरातस ( सत० पु+ ) १ ताड़ित
दे कर निकाल दिया गया,हो । &
प्रात ( ६ स्त्नो० ) धातोको आकारहा एक बड़ा बरः
तन जिसका किगारा घालोको किनारेगे ऊंचा होता
४ । यह आशा यूचते, क्व पैर घोने आदिया काम्त
आता है।
परातर ( स०9 त्ि? ) श्रत्यन्त हूरतर |
पराप्पर ५४० पु 3) परात् अ्ेछ्ठादपिः पर; चअछ:। ६१
योष्षष्ण, तिष्णु । भगवान् विशुस्ते भौर कोई टूरूरा श्रंछ
नहीं है,' प्रसलिए थो हो एकमात्र परायर हैं । २ ५२
मात्मा । ( त्विब् 1३ सव येछ, जिपक पर कोई टूमरा
नही)
परा प्रय ( स*० पु० ) परादपि प्रियः | रुणविशेष, उलप*
ढण | एक घाम जो कुशकी तरहंको होती है भर जिसमें
जोयागेह'कोसे टाने पढ़ते हैं । इसको वात।'में ठ'ठ
नहीं होते । डे शी
प्रराक्षन् ( ० पु० ) परः प्रात्मा । | परसाका, परन्रह्म !
परस्य ध्वक्मा ६-ततू। २ दूररेको प्राव्मा ।
३ बह जिहको घक्का
पराददि (२० व्वि० ) जिस प्रकार थ्त्र् को पराज्य हो |
हो प्रकार दानकागे। प
, “रादन (स यु० ) पर' उत्क टस्ंदन' यस्य, यदा परान्
मठ,न् घत्ति .ा प्रादयति, अदुह्युः फिच-च्यूर्वा
पारधषे घोटक, फारसुका घोड़ा ।
परादान (स'० क्लो०) परघ्मे
आदान' पम्यत्रदाना।
परोपझारक्ष लिए दयादि दारा कृप्णादिकी सम्यक,
दान) '
पराधि ( स० पु० ) परस्य भ्राधिः। थे टदूसरेका दुःख,
दुभरेको मानमपोड़ा । परः आाधिः । २ भ्रत्यन्त मानप्त-
पोड़ा 1
पराघोन ( म'० ० ) परस्य परेपां वा अधोन; ) परवश,
जो दूसरेके अ्रधोन हो, जो दूछरेके ताईमें हो । पर्याय--
परतन्त्, परवान, नाधवानू ।
“हवाधीनद्वस्तेः साफल्य न परावीनद्वत्तिता ।
ये पराधीनकर्मनों जीवन्ता६पि च ते रत! ॥
( गरड१० ११३० अ० )
पराधीनता (स'० स्त्री३) पराधीगस्य भाव; तत्न ततः
टाप.। पराधोनज्ा भाव, परतन्त्ता, दूभरेकी अधी-
नता |
परान ( छवि पु०) शरण दं खो ।
प्राना (हि० क्षि०) भागना ।
पर/नमा ( सं स्व्रो० ) परानित्यतया परा-प्रण_ करणे
बाइल० परम, स्वियां टाप,। चिक्षित्ता। बहुतोंका
छहना है, कि इस गच्दर्म णत्वपाठ अर्थात् पराणना ऐपा
पढ़ना ठोक हैं ।
परान्त-देगभेद, एक देशका नाम ।.,
परान्तक ( स*० पु० ) परोहन्तुक!। १ सब नाग्रक महा
- देव। महादेव मर्वोक्ा नाश करते हैं, ४शेलिये इस्हे
परान्तक कहते हैं। २ मोमान्तदेग।
परात्तकराय--चीलव'थोय एक राजा। इन्होंने मदुराका
ध्वस किया था; इस कारण इनका भौर एक दूसरा नाम
था मधुरान्तक 1
परान्तकाल ( स'० पु०) पर' स'मासेत्तर' अन्तःकाल: 1
मुमुछुभोको मंसारहानि, देशान्तशाल, सरत्युका समय |
जो ससारो हैं उनका जव देहान्तकाल उपध्यित
होता है, तब उस्े अन्तकाल और सुमुझुझो जघ स'छार
इानि अर्थात् भोग श्र देहादिका चन्तकाल उपस्धित
होता है, तब उसे,परान्तकाल कहते हैं। सशारियीका
झत्युरे बाद पुता जन्म होता है, इसलिए उसका नाम
अन्तकाल तथा मुर,छप्रोका रत्युफ़े बाद फिरसे
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