बँगला कृतिवास रामायण | Bangala Kritivas Ramayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)& उत्तरकाण्ड : २७.
शुनेछ कि लक््मणेर प्रतिज्ञानकाहिली । अनाहारे ,चौह-बर्ष आछे गुणसणि ::
इत्रजित अतिकाण. रावण-फोझर । करिब कठोर तप, ब्रह्मा दिल बर ६६
पेइ बौर चौह बर्ष तिद्रा ताहि 'याबे। अन्न-जल, फल-मुल किछुद ना खाबे -
निव्रात्यागी, नारीसुख येबा ना देखिबे। तोसा 'दोंहाकारे रणे. सेइ निपातिबें ७०
से सब बिधान भाई लक्ष्मण पूरिल। तेंद से दुरसन्त दोंहे समरे' सारिल
, फल-पुल, खेये आमि पोहाइनु निशि। त्ोह-ब॒र्ष लक्ष्मण से आछे उपबाती ७१
चमतकृता कौशल्या से शुनि _रास-कथा | लक्ष्मण 'करिला कफोले चुस्बितार साथा
तोमार एहेन गुण बाछारे लक्ष्मषण। सागरे कामना ' फकरि पेयेछि रतन ७२
चोह वर्ष आाछि 'आमि लोचन-बिहीन | पोहाइल काल-रात्रि हैल शुभ दिन ?
भाजि मोर सुप्रभात, सफल जीवन | लक्ष्ती करिवेन पाक अन्न भो व्यञ्जन छर३े
ए कथा कहिया माता चलिला अन्दरे। रामेर बचत गिया जावान सबारे
शुनि .यत राणीगण साननन्द-अन्तर।। सत्र पमिलि आअऑसिलेन रासेर अन्दर ७४ ,
मात शत-ऊनपञ्चाश दशरथेर राणी | नात्ता बिध भक्ष्य द्रव्य नाना सते आानि
प्रभालोक आने -यत, संख्या क्िबा तार | अयोध्या नगरे द्रव्य आने भारे भार ७५
पात्रमित्र रहारड़ि कत, ब्रब्य आने। पुज्ज-पुञ्ज राशि-राशि भुरि-भूरि समांतने
राणीगण दिल नाना आयोजन आति । लक्ष्ती-बध रान्धिबित जनक्क-नन्विनी ७६.
लक्ष्मण की प्रतिज्ञा की कथा क्या तुमने सुनी है ? 'यह गुणमणि चौदह
वर्ष अनाहारी रहा है । - रावण के पृत्न इन्द्रजितू और अतिकाय ने कठोर
तप किया था, ब्रह्मा ने उन्हें वर दिया था॥ ६९॥ कि:जो वीर.
चोदह वर्ष ,निद्वित नहीं ,होगा, अन्ने-जल, . फ़ैल-फूल कुछ नहीं खायेगा,
निद्रात्यागी होगा, नारी का मुख नहीं देखेगा, तुम दोनों को. वही युद्ध .
में मार सकेगा ॥ ७० ॥ . उन सारे विधानों को भाई लेक्ष्मण ने पूरा:
किया, इसी. कारण उन दोनों दुष्टों को युद्ध में मारा है। .. फल-मूल
खाकर हमने रातें बितांयीं, परन्तु चोदंह वर्ष से भाई लक्ष्मण उंपवासी
रहा है ॥ ७१.॥ . राम का वह कथन सुनेकर कोशल्या चमत्कृता, हो
उठी गौर लक्ष्मण का सिर चूमकर उन्हें गोद में ले लिया । -वत्स लक्ष्प्रण,
7रा ऐसा गुण है !- वत्स लक्ष्मण, हमने. सागर की कोमना कर रत्न
पाया,है ॥| ७२ ॥ चौोदंह वर्ष हम नेव्रहीन॑ जैसे थे। क्या अब काल-
रात्रि बीती, शुभ दिन हुआ. ? आज, मेरा सुग्रभात है, जीवन. सफल है।
आज, हमारी लक्ष्मी अन्न, व्यञ्जन आदि बनायेंगी ॥ ७३ ॥ ...यह कहकर
माता अन्तःपुर में चली गयी ,और सबको राम का. वचन सूचित कियां.।
सुनकर सभी .रानियों.का अन्तर्. आनन्द ; से पूर्ण हो गया। -सब मिलकर
रामचन्द्र के अन्तःपर में आयीं।॥। ७४ || 'दर्शरथ की. सात सौ उनचास
' रानियाँ:ताता प्रकार के खाद्य-पदार्थ -नाना प्रकार से लाने लगीं... प्रजा
जिंतनी लाने लगी उनकी क्या गिनती है ? वह अयोध्या नगर में भार-के-
भार द्रव्य-लाने लगी ।७५॥ . सामनन््त-बेन्धु-बान्धव दोड़-दोड़ंकर ढेर-के-हेर,
समूह-के-समूह, पूंज-के-पुंज कितने द्रव्य ला. रहे थे। रानियों ने नाना
. प्रकार के आयोजन (द्रव्यादि) जुटा दिये, लक्ष्मी-बन्धुं जंनकनन्दिनीं रसोई
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