श्री कृत्तिवास रामायण | Shri Krittibas Ramayan

Shri Krittibas Ramayan by कृत्तिवास - Krittivasनन्दकुमार अवस्थी - Nandkumar Avasthi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

कृत्तिवास - Krittivas

No Information available about कृत्तिवास - Krittivas

Add Infomation AboutKrittivas

नन्दकुमार अवस्थी - Nandkumar Avasthi

No Information available about नन्दकुमार अवस्थी - Nandkumar Avasthi

Add Infomation AboutNandkumar Avasthi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१६ अनुवादक का वक्तव्य कृत्तिवास रामायण का कथधानक प्राय वाहत्मीकीय रामायण के अनुसार है फिर थी स्थान-स्थान पर अन्य पौराणिक अंशो का भी पर्याप्त समावेश है । गोस्वामी जी के मानस की तुलना में आख्यानो की अत्यधिक प्रचरता कृत्तिवास रामायण की अपनी विशेषता है । कृत्तिवास द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों में रामायण के अतिरिक्त योगाद्यार बन्दता शिवरामेर यद्ध रुकमांगदेर एकादशी प्राप्य हैं। बंगला भडएण के इस महाकाव्य के रचयिता की सर आशुतोष मुखर्जी ने भी शभूरि-भूरि बन्दना की है और उसी कुल में जन्म पाने के नाते अपने को धन्य माना है । अस्तु प्रातःरमरणीय सन्त कृत्तिवास और उनकी रामायण का संक्षिप्त परिचय देने के पश्चात्‌ ऐस सुधाभाण्ड को हिन्दी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर अधिक लिखने का प्रयोजन शेष नहीं रहता । असंख्य कथारत्नो से अलंकत सवंरसपुर्ण इस महाकाव्य से राष्ट्भाषा के भण्डार की श्रीवद्धि वरने की लालसा इस अकिचन के मन में जागत हुई । इस मनोरथ के जागने पर सन १९१६ ई० मे स्टोम प्रिन्टिंग प्रेस लखनऊ द।रा प्रकाशित कृत्तिवास बालकाण्ड को देखा । उसके सम्बन्ध में जिज्ञासाएं की जिनसे विदित हुआ कि मरें पड़ोसी एवं सजातीय साहित्यमूधन्य स्व० पण्डित रूपनारायण पाण्ड्य जी ने प्रसिद्ध साहित्यप्रेमी न्यायाधीश स्व० बाबू कालीप्रसन्न सिह के आग्रह पर यह रचना की थी जो बाद में बाबू कालोप्रसनन सिंह के नाम सही प्रकाशित हुई। स्व० पाण्ड्यजी से चर्चा करने पर उन्होने मुझे उक्त वानें बतलाई ।... अनुवाद के संबंध मे भी उन्होंन बताया कि कृत्तिवास वालकाण्ड के हिन्दी अनुवाद से हो बंगला भाषा के हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करने का कायं॑ उन्होंने आरम्भ किया था । और शायद इसी कारण बंगला का प्रारम्भिक अम्यास होने से कृत्तिवास रामायण का हिन्दी भाषा में उनके द्वारा प्रस्तुत बालकाण्ड मुल ग्रन्थ का अनुवाद न होकर एक एरिवद्धित और स्वतंत्र ग्रन्थ सा बन गया है । उनका वह बालकाण्ड निस्सन्देह उनकी विद्वत्ता एवं प्रतिभा को परिचायक है । स्व० पाण्ड्यजी हिन्दी के प्रतिभाशाली कवि संस्कत-भाप। के प्रकाण्ड पण्डित तथा श्रीमदभागवत के पुश्तैनी विद्वान थे । और कदाचित इसीलिए वे कूनिवास रामायण के आधार को लेकर भी ग्रन्थ मे श्रीमदभागवत यागवाशिट अध्यात्म-रामायण रघवंश मत्स्यपुराण माकंण्डयपुराण आदि से विविध विषयों को प्रचर सख्या मे लेकर एक स्वतत्र वहतकाबव्य को रचना-निमाण का लोभ संवरण न कर सकें। यहां तक कि वह प्रन्थ मूल कृत्तिवास के आदिकाण्ड से कई गुना बढ़ भी गया । यह ग्रन्थ बा० कालीप्रसन्न लि६ के नाम से छपा ।. पाण्ड्यजी का नाम उस पर नहीं दिया गया है । आज उसके संस्करण प्राप्य भी नहीं है। इमी प्रकार बा० कालोप्रसनन सिह ने कृत्ति इस लंकाकाण्ड भी अमेठो निवासी श्री मथुराप्रसाद मिश्र द्वारा अनुवादित क कर स्टाम प्रिण्टिग प्रस लखनक से ही प्रकाशित करवाया । यह भनुवाद भ। यूज बगल पाठ के तद्प न होकर प्राय स्वतंत्र किन्तु नाना छन्दो स यक्त ॥ति विद्वतापर्ण है । यह भी अब अप्राप्य है । अत यह विचार कर कि स्व० पाण्ड्य जो की उक्त रचना से क्र ॥स रामायण के न तो ७ काण्डो की पूर्ति होती थी और न आदिकाण्ड की ही हिन्दी के/इस अनमोल प्रन्थ को प्रस्तुत करने की मेरी अभिलाषा दुढ़तर हो उटी ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now