बँगला कृतिवास रामायण | Bangala Kritivas Ramayan

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Bangala Kritivas Ramayan by कृत्तिवास - Krittivas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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& उत्तरकाण्ड : २७. शुनेछ कि लक््मणेर प्रतिज्ञानकाहिली । अनाहारे ,चौह-बर्ष आछे गुणसणि :: इत्रजित अतिकाण. रावण-फोझर । करिब कठोर तप, ब्रह्मा दिल बर ६६ पेइ बौर चौह बर्ष तिद्रा ताहि 'याबे। अन्न-जल, फल-मुल किछुद ना खाबे - निव्रात्यागी, नारीसुख येबा ना देखिबे। तोसा 'दोंहाकारे रणे. सेइ निपातिबें ७० से सब बिधान भाई लक्ष्मण पूरिल। तेंद से दुरसन्‍त दोंहे समरे' सारिल , फल-पुल, खेये आमि पोहाइनु निशि। त्ोह-ब॒र्ष लक्ष्मण से आछे उपबाती ७१ चमतकृता कौशल्या से शुनि _रास-कथा | लक्ष्मण 'करिला कफोले चुस्बितार साथा तोमार एहेन गुण बाछारे लक्ष्मषण। सागरे कामना ' फकरि पेयेछि रतन ७२ चोह वर्ष आाछि 'आमि लोचन-बिहीन | पोहाइल काल-रात्रि हैल शुभ दिन ? भाजि मोर सुप्रभात, सफल जीवन | लक्ष्ती करिवेन पाक अन्न भो व्यञ्जन छर३े ए कथा कहिया माता चलिला अन्दरे। रामेर बचत गिया जावान सबारे शुनि .यत राणीगण साननन्‍द-अन्तर।। सत्र पमिलि आअऑसिलेन रासेर अन्दर ७४ , मात शत-ऊनपञ्चाश दशरथेर राणी | नात्ता बिध भक्ष्य द्रव्य नाना सते आानि प्रभालोक आने -यत, संख्या क्िबा तार | अयोध्या नगरे द्रव्य आने भारे भार ७५ पात्रमित्र रहारड़ि कत, ब्रब्य आने। पुज्ज-पुञ्ज राशि-राशि भुरि-भूरि समांतने राणीगण दिल नाना आयोजन आति । लक्ष्ती-बध रान्धिबित जनक्क-नन्विनी ७६. लक्ष्मण की प्रतिज्ञा की कथा क्‍या तुमने सुनी है ? 'यह गुणमणि चौदह वर्ष अनाहारी रहा है । - रावण के पृत्न इन्द्रजितू और अतिकाय ने कठोर तप किया था, ब्रह्मा ने उन्हें वर दिया था॥ ६९॥ कि:जो वीर. चोदह वर्ष ,निद्वित नहीं ,होगा, अन्ने-जल, . फ़ैल-फूल कुछ नहीं खायेगा, निद्रात्यागी होगा, नारी का मुख नहीं देखेगा, तुम दोनों को. वही युद्ध . में मार सकेगा ॥ ७० ॥ . उन सारे विधानों को भाई लेक्ष्मण ने पूरा: किया, इसी. कारण उन दोनों दुष्टों को युद्ध में मारा है। .. फल-मूल खाकर हमने रातें बितांयीं, परन्तु चोदंह वर्ष से भाई लक्ष्मण उंपवासी रहा है ॥ ७१.॥ . राम का वह कथन सुनेकर कोशल्या चमत्कृता, हो उठी गौर लक्ष्मण का सिर चूमकर उन्हें गोद में ले लिया । -वत्स लक्ष्प्रण, 7रा ऐसा गुण है !- वत्स लक्ष्मण, हमने. सागर की कोमना कर रत्न पाया,है ॥| ७२ ॥ चौोदंह वर्ष हम नेव्रहीन॑ जैसे थे। क्‍या अब काल- रात्रि बीती, शुभ दिन हुआ. ? आज, मेरा सुग्रभात है, जीवन. सफल है। आज, हमारी लक्ष्मी अन्न, व्यञ्जन आदि बनायेंगी ॥ ७३ ॥ ...यह कहकर माता अन्तःपुर में चली गयी ,और सबको राम का. वचन सूचित कियां.। सुनकर सभी .रानियों.का अन्तर्‌. आनन्द ; से पूर्ण हो गया। -सब मिलकर रामचन्द्र के अन्तःपर में आयीं।॥। ७४ || 'दर्शरथ की. सात सौ उनचास ' रानियाँ:ताता प्रकार के खाद्य-पदार्थ -नाना प्रकार से लाने लगीं... प्रजा जिंतनी लाने लगी उनकी क्या गिनती है ? वह अयोध्या नगर में भार-के- भार द्रव्य-लाने लगी ।७५॥ . सामनन्‍्त-बेन्धु-बान्धव दोड़-दोड़ंकर ढेर-के-हेर, समूह-के-समूह, पूंज-के-पुंज कितने द्रव्य ला. रहे थे। रानियों ने नाना . प्रकार के आयोजन (द्रव्यादि) जुटा दिये, लक्ष्मी-बन्धुं जंनकनन्दिनीं रसोई




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