राजस्थानी शब्द कोष भाग 4 | Rajasthani Sabad Kosh Bhag 4

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : राजस्थानी शब्द कोष भाग 4  - Rajasthani Sabad Kosh Bhag 4

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सीताराम लालस - Seetaram Lalas

Add Infomation AboutSeetaram Lalas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
यहुद ३६५६ याग्यदत्त उ०--दादू सिर करवत वह, अंग परस नहिं होइ। मांहि कढछ जा यांनी-देखो पांने ( ठ. भें.) काटिये, यहु व्यथा न जांणे कोई । यांने-अव्य---- मतलब यह है कि, त्रर्थात । +“दादूवांग्गी रू. भे.--यांनी पहुद-सं. पु.-देश का नाम, जहां हजरत ईसा पंदा हुए थे । यांस-दैखो हरि (छह. भे.) यहुदी-सं. पु.-१ बहुद देश का निवासी । यांमल-देखो 'जमल (रू. भे.) २ उक्त देश की एक जाति । यांहू-१ देखो यहां. (र. भे.) सं. सत्री.-३ यहूद देश की भाषा । उ०--ते संतान तणी चिता करनु राजा यांह्‌, वि०-यहूद देश का, यहूद देश सम्बन्धी । दमन नांम रिसि ईंछा आवु मंदिर तेग्पि तांह । | “-न्लाख्यांत याँ--स्व ०-१ इन । े उ०-१ जिकग्ा नूं मीणखां रा मारण रो निस्चय जगाडई उणार बडी पुत्र कृंभराज तिछणहूं छोटो कन्हड़ याँ दोही बंधवां नूं बडी बरात रे साथ वरणतनूं वुलाइ मीणा हे मावण जिसड़ी एक बाटी जुदी ही बग्गायों। --वें. भा उ० --२ घिले इग्यारस वरस भगति ऊपरि प्रभ भीज। पिप्पलछ तुछछी पांन रांम यां ऊपरि रीज । -पी. प्र. २ इन्होंने । उछ०---१ तद्व राव सेस्जी कहायो, गढ़ अरठे मती घाछज्या, परे जांगद्य री हद में घात्थ सू या मांती नही। -“द., दा. उ०-२ एतां झाद छत्तीम कुछ, सीस अजी' पत्त धार। हलचल्ली मेद्धां घबरा, थां भलली तलवार । ३ इस । क्रि. वि.-१ इस प्रकार, इस तरह उ०--१ लघु ते दीरघ पुन पुखित, यां मात्रा इधकाय । त्यां छोटे न वड़ किय पता, व महांन बढाय । ““रा. रे. -जतदांन वारहठ उ०--२ महाराजा भांमी महक, तर सुर नागां नुर। कुसछ नहीं कंस केसर, यां दास अकरूर । पी, भ्रं. २ इससे | उ०-लग मत्ता चीवीस छंद मत्त लेख, सुज या अ्रधिका मत उपछंद विसखज । वरण मत सम नहीं ग्रमम पद जांणजै, मै छंदां मिछ दंदक मत्त बखांगाज । “+र. ज. प्र: रे यहां । उ०--तढे वीरमदेजी रे सांमा जोब पातसाहजी फ़ुरमायौ क॑ बीरम तुम अब तलक यां ई ही । “- द. दा. रू. भे. यांह यांत-सं पु. [सं. यान |-१ सवारी, वाहन । २ विमान । ३ गति, चाल । क्रि. वि. --इस प्रकार, इस तरह । २ देखो यां (रू. भे.) उ०- पचीसां नूं ही कूट मारिया, जांतीवार्स ऊपर जाय ने जांनियां नूं कूट मारिया, जांनी सोह मारिया, श्रावू भाई लूंणी थी तठे खबर मेलणी, तितर एकण यांहू रे रजपूत कह्मौ--ह जाईस' तर कह्मयी 'तूं क्यूं कर जाईस ?. --नैणसी या-सर्वे.-यह उ०--१ मतवाला हो पोढ़ग्या, सुध-बुध दीन्ही भूल । पर हाथां रा दी गया, या हिड़दा में सूल । “ अज्ञात । उ०-३ यथा कहता ही पातसाह री सैन स॑ वजीर सी तीर मंकुवांगग री छाती रे पार फूटो । - वें. भा. उ०-३ एक अखंडी ब्रह्म की, जा घट भिलमिल जांनि । दरीया उत्तिम साथ की, या ही रीत पिछांनि। “अनुभव वांणी क्रि. वि.-अ्रथवा । उ०-सरव वंस तारणी, रांम या भागीरथी । --रांमरासौ याक-सं. पु.-हिमालय पहाड़ पर प्रायः तिब्वत में होने वाला एक चौपाया जानवर, जो बोका ढोने के काम श्राता है । याक्ृत-सं. पु. [अ.] एक प्रकार का लाल रंग का बहुमूल्य पत्थर | याग-देखो 'जाग' (रू. भे.) (डि. को-) यागवलक-देखो 'याग्यवल्वय' (रू. भे.) यागि-देखो 'जाग' (मू. भे.) उ०--जो फल पांमइ तपसी सवे, जे फक्र हुई बांद छोडवे । | कर जे फल पामइ कीघइ याणि, जे फल भेटथयां हुई प्रियागि । ु “--कां. दे. प्र. या्य-सं. पु.-भूगुकुलोत्पन्न एक गोचकार । याग्यतुर-सं- १.-ऋषभ नामक अ्रश्वमेघ करने वाले राजा का पंतृक नाम । याग्यदत्त-सं., पु.-वणिष्ठकुलोत्पन्न याज्ञवल्कय नामक गोत्रकार का तामान्तर ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now