संस्कृत कवियों की अनोखी सूझ | Sanskrit Kaviyonki Anokhi Soojh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sanskrit Kaviyonki Anokhi Soojh by जनार्दन भट्ट - Janardan Bhatt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जनार्दन भट्ट - Janardan Bhatt

Add Infomation AboutJanardan Bhatt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
संयोग और वियोग 1 ५ ४२ भावार्थ +--पति) प्रियतमै ! थोड़े दितकी तो बात है, आँख मूदंकर कुछ दिन तुम किसी तरहसे बिता दो। (पत्नी) हां] हां! में श्रॉपों को तथतस बन्द किये रहोगी जयतक दिशाए' मेरे छिय्े बिल्कुछ शून्य व हो ज्ञायंगी। (पति) घगड़ानेक्ी वात नहीं है, में बहुत जल्द व्यैद आऊंगा। (पत्नी ) अगर आप छोरदेंगे तो अपने मित्र थौर घरवा्कोके भाग्य से ] ( पति ) जो कुछ तुम चाहती हो चह कही ! योछो यपा कहना चाहती हो?! (पक्षी) जय फिसी तीर्थमें ज्ञाना तो मेरे नाम तिलांजलि दे देना वस यही में चाहती हैं । कसा पढ़िया व्यंग्य इस एलोक्में पत्नीने कहा है ! प्रियतमऊे परदेशसे श्लामेपए झिसी स््ीफी दशा इस श्लोक में बढ अच्छे दंग से घर्णन की गयी है : टृष्टिविन्दुनमालिका, स्तनयुर्गं लावण्यपूर्णों घटी, शुप्राणां प्रकरः स्मित सुमनला, वकष्रभा दर्पणः 1 रोमांयोद्यम एवं सर्पपरुण:, पाणी धुनः पलेवी, . / खांगरेय गृह प्रियंस्प विगतस्तन्व्या ह्त मंगलम॒ ॥ ४३ ॥ छ३ भावार्थ :--ज्ञर सियतम घरफमें प्रवेश करने लगा तो उसकी प्रियतमाने अपने अंगोहीसे यर्थोचित मगछाचार पूरा किया । उसके एम्दक देफनेने बन्दनवार का, दोनों स्तनोनि झछाबए्यरूपी जल से भरे हुए दो घरडोंका मुस्कराहटने सफेद फूछकी वर्षाका, मुषकी कान्तिने दर्पणका, रोमांचने स्सों फे कणोंका, हाथोंने पहचोंका काम दिया।. इस घ्ल्येकमें कोई अपने मित्रको उसकी विर्द विधुण प्रियतमाका दाल पत्र लिखकर सूचित करता है :-- ल्छ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now