विष्णु पुराण भाग - 1 | Vishnu Puran Bhag - 1

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Vishnu Puran Bhag - 1  by वेदमूर्ति तपोनिष्ठ - Vedmurti Taponishth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका अठारह महापुरासों मे यद्यवि यह विष्णुपुराण! प्राकार को दृष्टि से पबते छोटा है। पर इसका, महत्व प्राचीन समय से ही बहुत प्धिक माना गया है । प्रन्याग्य पुराणों में जो पुराश-सूचियाँ मिलती हैं उत सभी में इसको तूनोय स्थात दिया गया है । ससछत के विद्वानों की दृष्टि में इसकी भाषा ऊंचे दर्जे की साहित्यिक, काव्यगुण सम्पन्न भौर प्रमादयुझयुक्त मानी गई है। जहाँ तक प्रनुमान है भाषा भोर वर्णतशैनी की श्रेश्ता में भागवत के सिवाय किसी भ्रन्‍न्य ग्रप वी तुलना इससे नहीं वी जा सकती । भूमएडल का स्व, उपोक्षिप, राजवगों का इतिहास, इृष्ण चरित्र आदि विपयों का इसम बडे बोघ- गम्य ढ़ ग से वर्खुंन दिया गया है। कई पुराणों मे जो साम्प्रदाषिक झएडन- मशइडन्‌ भ्रंथवा विरोध की भावना पाई जाती है, उससे भी यह मुक्त है। *घामिक तत्वो वा इप्रमें जैसी सरत और सुबरोध शली में वन किया गया है उसती. जितनी प्रश्ञता को जाय कम है । 'विप्णुपुराएए! की इलोक सरप्रा बे विषय भे बडा मतभेद है। ध्रधिकाश स्थानों में २३ हशर इ्लोव बसलाये गये हैं. पर जो ग्रय इंत समय प्राप्त है उसमे केवल सात हजार इलोक पाये जाते हैं। इस पर कई पबद्ठान कहते हैं कि “विष्णु घर्मोत्तर प्राण! इसी का उत्तराध है। इसको भान लेने पर भौर 'विद्णु घर्षोत्तर' के नौ हजार इसोको को जोड देने पर भी घोलह हजार की सहया प्राप्त होती है जो तेईस हजार में सात हजार कम है। इस प्रकार यह एक ऐसी समस्या हो गई है जिसके सम्बन्ध में कोई (निर्णयात्पक्र सम्मति दे सक्ना असम्भव है ॥ यद्यपि डा० दिलसन जैसे विदेशी विद्वात इसको वहुत बाद की कृत्रिम रथना कहकर छुटकारा पा जाते (३1




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