जैन - लक्षणावली भाग - 2 | Jain Lakshanavali Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
479
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाशकोय
प्राचीन भारतीय विद्याओं के व्यापक सन्दर्भ में जेन वाइमय, इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व के
अध्ययन-अ्रनुशीलन और प्रकाशन के जिस उद्देश्य से 'बीर-सेवा-मन्दिर की स्थापना की गयी थी, उस
दिशा में जैन लक्षणावली' का प्रकाशन एक विशेष कदम है। इसका प्रथम भाग (अ-औ) दो वर्ष पूर्व
प्रकाशित हुआ था और उसका देश-विदेश में सवेत्र स्वागत व सराहना हुई। अरब द्वितीय भाग पाठकों
के हाथों में सौंपते हुए हादिक संतोष का अनुभव हो रहा है ।
'पीर-सेवा-नन्दिर! श्रौर उसकी शोध-प्रवृत्तियां :
'वीर-सेवा-मन्दिर!' की स्थापना स्व. आचार जुगलकिशोर मुख्तार ने अपने जन्म-स्थान सरसावा,
जिला सहारनपुर (उ. प्र.) में अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया), विक्रम संवत् १६६३, दिनांक
२४ अप्रैल सन् १६३६ में की थी | इस संस्था के माध्यम से स्व. मुख्तार साहब ने तथा संस्था से सम्बद्ध
अन्य विद्वानों ने जैन वाहःमय के अनेक दुर्लभ, अपरिचित और प्रकाशित ग्रन्थों की खोज की तथा प्राचीन
पाण्डुलिपियों के सम्यक् परीक्षण पर्यालोचन और स़म्पादन की नींव डाली । संस्था ने जो प्रच्थ प्रकाशित
किये उनकी विस्तृत शोधपूर्ण प्रस्तावनायें न केवल उन ग्रन्थों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, प्रत्युत जैन आाचार्यों
और उनकी क्ृतियों पर भी विशद प्रकाश डालती हैं ।
आचाये समन्तभद्र पर मुख्तार साहब की अ्गाघ श्रद्धा थी। आचाये समन्तभद्र भारतीय दाशेनिक
जगत में अद्वितीय माने जाते हैं और उनके ग्रन्थ जेब दर्शन के आधार-प्रन्थों के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
मुख्तार साहब ने आचाये समन्तभद्र के जीवन पर सर्वप्रथम विस्तार के साथ प्रकाश डाला। उनके ग्रन्थों
का सम्पादन किया | उनका विद्धत्तापुर्ण विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया । दिल्ली में उन्होंने सन् १६२६
में समन्तभद्राश्रम की स्थापना की थी और '“अनेकान्त' नामक शोधपूर्ण मासिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ
किया था। बाद में यही संस्था 'वीर-सेवा-मन्दिर' के रूप में प्रतिष्ठित हुई और 'अनेकान्तः उसका मुख-
पत्र बना ।
श्राचार्य जुगलकिशो र मुख्तार :
आचार्य जुगलकिशोर का सम्पूर्ण जीवन साहित्य और समाज के लिए समपित रहा । उनका जन्म
मगसिर सुदी एकार्देश्षी, वि. सं, --६६३४- में, सरसावा में हुआ था । . कुछ समय तक उन्होंने मुख्तार का
कार्य कुशलता के साथ किया । बह जैव समाज के पुनर्जागरण का युग था। मुख्तार स्गह्ृव एक क्रान्तिकारी
समाज सुधारक के रूप में आगे आये । उन्होंने सामाजिक क्रान्ति की दिशा को सुदृढ़ शास्त्रीय आधार
दिये । उनके द्वारा रचित मेरी भावना” के कारण वे जन-मानस में पैठ गये ।
मुख्तार साहब अपने अनवरत स्वाध्याय, सूक्ष्म दृष्टि, गहरी पकड़ और प्रतिभा-सम्पन्नता के कारण
बहुश्रुत विद्वान बने । ऐतिहा सिक अनुसन्धान, आचारयों का समय-निर्णय, प्राचीन पाण्डुलिपियों का सम्यक
परीक्षण तथा विश्लेषण करने की उनकी अद्भुत क्षमता थी । उनके प्रमाण अकाटय होते थे । उनकी यह
साहित्य-सेवा श्र्ध शताब्दी से भी अ्रधिक के दी्घंकाल में व्याप्त है । जीवन के अन्तिम क्षण तक बे श्रध्ययच
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