हिन्दी गाथा सप्तशती | Hindi Gatha Saptashati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२१ ) पठम बारह मत्ता, बीए अद्धरणद्दि सजुत्ता। जह पठमें तह तीअ, दृद्द पद्चविहृसिआ गाहा।॥।* सस्कृत छन्दशाशत्र में आयो के लिए जो नियम निधोरित दे बह भी इसी अकार का है-- थस्या पादे प्रथमे द्वादशमाजरास्तथा तृतीयेहपि | अष्टादश द्वितीये चतुर्थ के पश्चद्शसाय्यों ॥ अर्थात्‌ जिस छन्द छा प्रथम चरण बारह मात्रा का (स्वर की लघुता एवं गुस्ता के परिमाण से ) द्वितीय अठारह का, ढृतीय बारह और चुथ पन्द्रद का द्वोवा है उसका नाम आयी है'। इस प्रकार सस्क्ृत की आयों हो प्राकृत का गाथा छन्द है । बज्ञालग्ग! मे जयवल्लभ ने गाथा! की सराहना करते हुए कहा है-- अद्धक्सरभणियाण नूण सबिलासमुद्धहसियाइ। अद्धच्छिपेच्छियाइ गाहाहि विणा ण णाज्ञति॥ ६॥ पही नहीं, आगे कहा है-- गाथा रुपह बराई सिक्खिजन्ती गवारलोएहिं। कीरइ लुख़पलुखा जद गाई मन्ददोदेहिं॥ १४ ॥ कंबि उम्रग मे यहाँ तक कह गया है. कि-- ललित महुरक्सरए जुपईजणवल्लदे सपसिंगारे। सते पाइअकब्ये को सक्कश सकय पढिऊ॥ अथोत्‌ ललित एवं भधुर, श्गारिक तथा युबती जन प्रिय गाथा सस्कृत काव्य से फ्हों मिलेगा १ उपसंहार इस प्रकार यद्‌ स्पष्ट है कि गाथा सप्तशदी! बदी रचना नहीं है. जिसे गाथा कोश नाम हारा अमिद्धित किया जाता है। 'शालियाहन $ ससकृत रूपान्तर-- प्रथम ड्वादथ मात्रा द्वितीये क्ष्टाइशपि सयुक्ता। चथा प्रथम ठया तृतीथ दशपञ्नविभूषिता गाथा ॥




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