श्री मोक्ष मार्ग प्रकाशन | Shri Moksh Marg Prakashan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ हिस पर्याय विषें बो कोय, देखन-ज्ाननहारों सोय | मैं हूँ जीवद्रव्य, गुनभुप, एक अनादि अन्त अरूप । २! कर्म उदयको कारन पाय, राभादिक हो हैं दुःखदाय । ते मेरे औपाधिक भाव, इनिकों विनसे मैं शिवराय ॥४३॥। बचनादिक ठिखनादिक क्रिया, वर्णादिक अरु इत्द्रिय हिया । ये सब हैं पुदूगल का खेल, इनिमें नाहिं हमारो मेल ।।४४॥। इन पद्यों परसे श्रापके श्राध्यात्मिक जीवनकी भ्रांकीका दिग्दशंन होता है । श्रापके गुरुका नाम पं० बंझीधर था, इन्हीसे पं०जीने प्रारम्भिक दिक्षा प्राप्त की थी । भ्राप श्रपनी क्षयोपशमकी विज्ेषताके कारण पदार्थ श्रौर उसके श्रथका शीघ्र ही श्रवघारण कर लेते थे । फलत: थोड़े ही समयमें जैन सिद्धान्तके उपरान्त व्याकरण, काव्य, छन्द, श्रलंकार, कोष श्रादि विविध विषयोंमें दक्षता प्राप्त कर ली थी । पंडितजीने वस्तुस्वरूपका श्रवलोकन कर स्वेज् वीतराग-कथित '्यायी पंथका झदुसरण किया, जैनियोंमें जो शिथिलता थी उसको दूर करनेका प्रयतन किया, शुद्ध प्रवृत्तियोंको प्रोत्साहन दिया श्रौर जनतामें सच्ची धार्मिक भावना एवं स्वाध्यायके प्रचारकों बढ़ाया जिससे जनता जेनधर्मके ममंको समभनेमें समय हुई श्रौर फलतः भ्रनेक सज्जन श्रौर स्त्रियाँ श्राध्यात्मिक चर्चाके साथ गोम्मटसारादि ग्रत्योंके जानकार बन गये । यह सब उनके प्रयत्नका ही फल था । सहधर्मी भाई रायमल्लजीने श्रापका परिचय देते हुए लिखा है कि--“म्र टोडरमलजी सू' मिले, नानाप्रकारके प्रश्न किए, टोडरमलजीके जानकी महिमा श्रदृशुतत देखी ।...श्रवार अनिष्ट काल विषे टोडरमलजीके ज्ञानका क्षयोपशम (ज्ञानका विकास ) विशेष भया ।” प. देवीलालजीने लिखा है कि- टोडरमलजी महाबुद्धिमानके पास शास्त्र सुननेका निमित्त मिला! । प्रज्माकी-घुद्धिकी अलौकिक विशेषता और काव्यशक्ति पंडितप्रवर टोडरमलजीकी बुद्धिकी निर्मलताके सम्बन्धमें ब्रह्मचारी राज- मलजी ने सं० १८२१ को चिट्टीमें लिखा है “साराही विषे भाईजी टोडरमलजीके ज्ञान का क्षयोपशम श्रलौकिक है, जो गोम्मटसारादि ग्रन्योंकी सम्पूर्ण कई लाख शोक टीका बनाई श्र ४-७ प्रन्योंकी टीका बनायवेका उपाय है । सो म्रायुकी श्रधिकता हुए बनेगी | श्रर धवल, जयधघवलादि ग्रन्योके खोलवाका उपाय किया वा वहाँ दक्षिण देशसू पाँच सात श्रौर ग्रन्थ ताइपत्र विषे कर्णाटकी लिपिमें लिश्या इहाँ पघारे है । याकू मट्नजी




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