रसगंगाधर भाग - 1 | Rasagangadhar Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
453
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रस्तावना १९
एहना आवश्यक ह्$ । फ्लव इसके क््यन से भा -हा काठ सिद्ध हुई जो केशव मिल ने कहा थी।
गोविन्द उत्तर मेयिल ज्ञाद्मण थे और “नवा समय सालहता शवाच्दा वा उक्ताष विद्ियत हे ।
(१२ ) श्मके अनल्तर हा रहगह्ाघर रु निमाता फ्रण्डितराज जंगन्नाग का छाल आता है।
इहोने काव्यस्क्षण का जा रूप स्थिर किया है. और उससे सख्वन्ध में जो कुछ मानक बात बा ह
बे सत्र शक्प पुस्तक में देखा बा सकती हैं, अढ उनका ल्लय यहाँ फिपपरण समयक्र नर जिया
बाता है, जिशतुओं को भय में वे कर्नें देखनी चाहिये
अब इस प्रकरण के उपलदार-माग में सुसेयद क्टना हे जि--परारम्भ में सौन्दयपूण अथवा
सोन्दवेरहित सदा वर्ना का काब्य कद्ठा उादा था। बाई» कहता सौस्द्रपुण उन का काव्य
कहा जाने छग, पर अवत॒क कण का काइ सप्स लक्ष. नहीं पतन था। सवश्यन अ्नपुराण में
काव्य का खास हभ0 क्य' ए्या ।तस्क अनुसार सन्दयनव ज्यों पर छठर पतप्रादन करनाल
शब्द काव्य झाज़े जाने लय। दण्ने प्र यद झब्दमात्र कास्यतावाद चका इस बन मठ
के क्छ में झब्दायभपकव्यनायद का +रभप हुई, यो. मम्मर मंठ्र तक चलता रहा; १
सौन्दर्य का कारण ज्यः है इग विपव में इस बोच > आचयों में भ मतमेद पावर”) मन
आदि *;वपथ आचा्य सन्दव शा कारण समानरूप से ग्रुणठया अल्कार का मलनो रह आग
चल्का मम” ने अच्कार का या1 दना दिया और शुध ठया गुण्ज्यजक रखता का पसुप्र माता
काव्य में दोष का ने होता वाबन मे लेकर मस्मट प्य्त आच यों के मत 4 नयानकूप से आतत्वक
समझा लाता रहा
रिश्वताथ से समय में आकर पुन कान्यत्ता का रूव ददला। अब 7र शच्दमात्र का कत्य
मना बाने लगा, अये को काव्यल्क्षण से वहिप्त का दिया स्व. वम थुग में आकर गुण रुद्रार' कर
न्यान भा नयप्य सा हो गया अवात् एसा समया जाने हुगा कि गुण अल््दार काब्य में रह वा आछा
भाद नै पर वेयदिन मो रहें, तद मी इब्दतिचष का कान्य कटलान में वाधा नहीं हां सकती
रत हम में दोषों एर मो इुछ दया दिख*ड़ र३ वाउथ थह हे कि उसके रटन पर ,। अब्शिए
को काव्य करते में छोगों को आपत्ति नहों रही) प्राचीन सायताआ में इन सत्र तिविल्लाओ ने
अतमन का प्रधान दृतु यदू हुआ कि ।वइ्न्नाय तथा उनके समकाचौन अन्य विद्वान्न रच्य मई
सोदवये का कारण शकनात रस को मातने लो। यह बट नदा सूक्क' चाहिये कि रमब7 ले ये
घकल अपल्क्ष्यकर्मों का सग्रट अमीष्ट है
यबदि वस्तु आल्कार और रसादिझप त्रिदप् ध्निदत की अस्वेष्य तथा अन्य रिशनाव
है बह पू्त दी आतन्दयर्धनके क्षेण स्ा्रेत दो चुकाथा परन्त क्षअरक्षारमें सन्ययका
प्रवेश विउबनाथ से पहले किसी ने नहीं कराया है। ध्वन्ययों नें भा कैद रस का क्न््यका
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है नन्वन्णकारे>तिव्याप्ति, स्कारलविशेषानुपादालाईति ने (न, थव बिपि-
श्यपेनैतदुकतम्-प्त्यवेजत/लड्वारी शच्दाया काब्यन् करचिद स्थुटालडूरविशव5 ने कृव्यावरदानि मु
नआाफ्पयक्रपाद, अधाचत्य चावाखुस्े से विज्ादाद? नोरमेब्यस एड्ार कल्याव् मे
मेजेति ऋजु पया । वय तु प्श्याम न्नौरले स्फुटान्द्वारविरदिषिन बाल-जार, यो रक्षादिर
#ड्वारस्त दय समत्यारदेवु । दया च यंत्र रसादीनारत्यान न ठव सुटाडईगपेक्ट / नौरसे तु
ये ने स्फुटोइन्दार स्वाद वीकडतइचमातार स्थात। चमत्कारसारज्च काव्यन् शचष्य स्कुणा
शकुएपेन्ना 7!
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