कवि श्री माला सिन्धी | Kavi Shri Mala Sindhi

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Kavi Shri Mala Sindhi by किशिनचन्द बेवसि - Kishinachand Bevasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्र १९५३ में मरी पोबिल्द मास्‍्दीने संत जो मौणु ठया प्रणौ ज़रह्ा बलर सता विएड़िया गामक दा उपस्याम सिखे। सुखरी रक्तमचम्टाचौका फिरदप्ट दच्ार्श शामक पहका उपस्यास निक्‍काधा। “८ इस उपस्पासके बाएब औमती सुस्त उत्तमचख्दादीनें उपन्याक्र-जणतूर्म झपता पहत्दपूर्ण स्थान छसा लिया है और पद कहनेमें कोई जत्युक्दि ले होगी कि पुख्दरी आग मापा और कष्ठा खादिद विचारस इस छेजमें अनुपम हैं। यघपि भी गोविन्द मास्ही सेप्ध्ठम उपस्पासक्षर है फिर भी सुन्दरीका स्पात विधिप्ट ही है। इसह़य असाश यह है हि डेड़ बपडे मरदर इस उप्स्पासऊै दो संस्करण निम रू चुक ई इस बर्षषा छल्तिम उपश्यास शी शिक्षों रामबाघौ हारा किछिश गुमान था जिस # भारत जीन ” बालोंते प्रराधित्र फ्या। १९५४ में पूर * मौरिक उपन्पास गिड़झ1 स्पानामाबसे यहाँ झेशरू उपस्पासकारांके सलाम तथा रचनाभोंकौ सूची ही प्रस्तुत की जाती हैं -- हैेशक उर्व्यास प्र्मभग पृह ३ याबिन्द माहही रुक्तदार रायौ प्रशासन पृह २ पोपफिन्द गासद्ी अचल निपाहूं भारत जौषग बह ३ मोली प्रदाग अर्बारा उजासा रिममिस पृ ४ मझातत ग्राषापौ सजू बड़ाजौ पृ ४. दासु ठालिब बीत सरपम सृह ॥. मोशन कमा मम भारत गृह ७ मोइन कस्याण जाबारा भौरत यृह ८. चन्पृष्ठाश्न णपसिद्ापौ मुँहिशी घादी भारत था इसक बताबा ”मौरण साहित्य यारा ” तका “प्रमात साहित्य साझा ? हाए प्रषाित बबिनारा और मफ़्त गसताड्ारा रचित दागि बाकौ आहे शऔ.और जि०पी गसामक दो मौचिक दप्स्पास तिक्स चुके ई। प्रडणशन पृह्दोके अक्ाबा इ॑ई साप्ताहिक छऔौर सौशिक पिक्ाओसे बह हो सुरदर निदख छाती हैं यदि टनह्ा संकलन किया जाए ठा कई निदन्ध प्रभ्प तैयार हो सकते हैँ। ऐसी परजिकाजोंम “डिख्बासी” शाणाहिक सुक्य है। इसरो १५०९० पतियाँ छाती है। गई दुनिया शामहझ एक और साप्दादिंए ६1 शोक पघोत स्‍् शोइ-जीवाके संप्रजू करतमें श्री हाययघ घारती स्मुख्य प्रप्ण रूर रह है। उसे लाइ-गीत असी दज-पजिवाजायें है छप रहे है, पुम्धक -रुपमें अभो हुड़ गही छप शके है। ह् नह




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