भारतीय राजनीति और शासन | Bharatiy Rajniti Aur Shasan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
451
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विद्ोह के परचात वयानिक परिवतन 133
और मद्रास प्रश्ृति दूसर प्रातो के लिए झ्रावश्यक वानुन बनाने के सम्बंध मे पर्याप्त
जानकारी नदों था । इन प्रालो के प्रतितिधिया को यह शिवायत्र रहती थी कि बंगाल
के प्रधिनिधिया वी प्रधिक सत्या हाल ने भारण हमारो एक नहीं चत्त पाती । तोसरा
दोप यहू था कि प्रवस्थाविवा सभा ने कई एस वास अपने हाय मल रख थ जिन्हें
शतलानीय घासन पवस्था वी हृष्टि से ठीक सही वहा जा सबता था। वह बायपालिका
# काम पर तरह तरह की पश्रापत्ति करन लगा था थौर उत्तका यहे प्राग्नह था कि
गुप्त राजपैत्नो घो मो उसवे सामने रखा जाएं । यवस्थापिका घमा भी यह अवृत्ति
आायपालिया वे लिए बड़ी प्सुविधाजनक थी । कतल गवनर जनरव लाड कतिग से
१८६० में भारत मंत्री सड चासस बुड वी रन सारी बढितार्या भौर झावश्यक गम्रा
के सम्ब'्ध मे एवं जारदार पत्र लिखा । ६ जून १८६६ का सर चाल्स बुह ने भारत
परिपर प्रधिनियम कामन समा ( छ०0फ6 ण॑ 00ग्रप7०75 ) के सामने प्रस्तुत पिया |
प्रमुत उपबध---१८६१ के भारत परिप्ट प्रधिनियम ने पहला काम तो यह
किया वि गंदव र जनरल को वायपाजिा परिपत मे एक झोर पौचत्रा सतहय बटाया 1
यदू सदस्य बानती पथ स सम्बंध रखता था) प्रधिनियम ने दूसरी बात सह की कि
गवसर जनरल वो परिपत का वाय सुदार रूप से चवान के लिए तिवमर श्रौर प्रटेश
बनाने मं। अधिकार िया। गवनर वमरतत झपनी अनुपस्थिति से परिपत का बटकाी का
समापतित्व करने द लिए परिपत में स हो किसी एक सत्सस््य को सतानीत बर सकता
चा। प्रधिनियम ने गवनर जवरत को मह भक्ति दा थी पति वह भारत मे विभ्राग
अ्यपस्या चला सता है प्रधात प्रपना वायपालिरा परियत के प्रत्यक' सत्म्य को शासन
मे मोई एर महत्वपूरा विभाग सौंप सकता है। विभाग “यवस्था वा मूल भमिद्धान्
यहू था वि अयेक विभागास्यश धपने पिमाग के छाट छाटे प्रश्ता का स्वय ही विशय
कर और बढे बढ़े प्रश्वों वा प्राय पिभायाणा/ला से विचार विनिमय मरक तथा गवनर
जशनरत से परामश लबर निएय वरे । १८६१ क प्रधिनियम ने तीसरा मल्खपूण
परिवत्तन यह किया वि उसने विधि भौर विनियम बताने मे लिए गवदर ज्नरत की
परियतल वा विस्तार किया । झधिनियम ने निश्चित दिया कि परियल मे प्रतिरिक्त
सदस्य पी सम्दा बम संवम ६ और भपिक से प्रपत्र १२ रचा चाहिए ॥ यह
झावश्यव था वि इन भवतिखित सत्स््या में बम से दम आधे सत्य मर सरकार हा 1
झतिखित सरस्या वा पाययाल दी बंप था । परिपत वे काय और पझधिष्ार विधि
धोर विनियम बनाने तब हो सामित थे । उस बायपालिवा व वारयों मे हस्तक्षप बरने
पे शविद नहीं थी ६ परिषत के ऊपर प्रनक प्रत्िदाघ लग हुए थे । सावजनिक ऋष
और राजस्व धम पोर धगा झाहि विपया से सम्ब्ध रखने बाते अस्लाव गवसर
जनरद भी पृदस्वीइ॒ति के दिना। उपस्थित नहीं दिए जा शक्ठ थे । गदनर जनरख
परतिपद् द्वारा पास किए भए बिशी भी बानूद पर न बेदत विशपाधिकार का हो अयोग
इर सहता था, पत्युत उस भझारात-दाुज में प्रष्पानत निवासते पा भी शक्ति जी ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...