श्री सिद्धचक्रविधान | Shri Siddhachakravidhan

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Shri Siddhachakravidhan by सन्तलाल जी - Santalal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ चएएएाएंाणएछ 1 न प्रस्तावना। [क्रै-+ ७७००-४३ ७३---६---७-:/ * श्री सिद्धचक्रिधान ! का.माहात्म्य अपूर्व है। सिद्धचक्रतत व उसका विधान करनेसे श्री श्रीपाल महाराज आदि अनेक महानुभाव रोग व दु.खसे छुटकारा पाकर उत्तम सुख-सम्पत्तिको प्राप्त हुए थे यह सत्र प्रसिद्ध है। अतः यह विधान हिन्दुस्तानमें अनेक स्थानों पर श्री अष्टाहिका पर्वमें होता है जो संरक्त व हिन्दी दोनों भाषामें हैं, परन्तु आजतक यह विधान छपा न होनेसे अनेक स्थानोसे हमारे पास सूचनायें आती रहती थी कि 'सिद्धच्क्रविधान ” अवश्य छपाना चाहिये जिससे इस विधानके करनेमें सुभीता हो । इस कारणसे हमने इस विषयमें पूछताछ प्रारम्भ की तो अन्तमें यह निश्चय हुआ कि यह सिद्धचक्रविधान जो कविवर सन्तलालूजी कुत हिंदी भाषामें छन्दबद्ध है उसको प्रकट किया जावे तो ठीक होगा । जिससे हिन्दी पढ़नेमें सुभीता हो व संस्कृत न पढ़े हुए भाई बहिन भी इस विधानको पढ सकें। यह हिन्दी भाषाका विघान सहा- रनपुर निवासी श्रीमान्‌ लाला नारायणदास रूडामलजी शामियाना- वालोंके पास था उन्होंने हमसे यह विधान छपवानेके लिये कईवार प्रेणाणा की थी। अतः आपसे ही इस विधानकी कापी हमने मांगी तो आपने सहषे अपने खर्चेसे इसकी कापी करवाके उसको दूसरी दो तीन प्रतियोंसे मिलान करके हमको मेज दी जिसपरसे यह ““सिद्ध॑- चक्रविधान! भाषा पाठ प्रकट किया जाता है।




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