अजात शत्रु | Ajat Shatru

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Ajat Shatru by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नह दरकीओ / काजल हु ही बॉ चचुलन # आपसी प्राप्य पूर्व च त प्रनावित नपस । 3. मृग्यानियत ८ दूसज्जरपांसु- वददर्श सा-॥ के जप ञ्् ५ तम्यानयता समा थे बत्सेश सस्युदीरित ग्‌। रेत््यादि | ( मदनमचुक़ा खबक ) अर्थात्‌ पहिले भावस्त्री में पहुँचकर, उद्यान में ठहर कर, उसने सल्ली फे बताए हुए वत्सगश प्रसेनंजित्‌ फा शिकार फे लिये जाते समय, दुरेसे देखा | यह वृद्धावस्था फे फारण पांड बर्ण धो रहे थे । इघर चौद्धा ने लिखा है कि “ गौठम मे पपना नर्वोँ चाहुमास्य छौशांयी में, उवयन फे राज्य काल में, व्यतीत क्रिया, और ४५ साहुमास्य फरके उनका निर्वाण हुआ ऐसा मीं फट्दा जाता है कि-- प्रजातरातु के राग्य।मिपेक के , नें या आठवें वर्ष में गोसम का निर्याण मुझ । इससे प्रतीत होता है कि गौतम के ३५ थें या ३६ थ चातृमोस्य के समय अजातरशच्रु सिंदासन पर चैठा। सब शक चैह थिंवसार का प्रति- निधि या युवरास-मात्र था। क्योंकि श्यजात ने पपने पिता को 'सलग फरफे, प्रतिनिधि रूप से, यहुत॑ दिना तक रा|ज्यकार्य फिया था, और इसी फारस गौतम ने राजयृदू फा जाना यन्द कर दिया था। ३५ वें चातुर्मास्य में ९ चातु्मास्यों का समय घटा वैमे से 'निम्वय होता है'फि भयजात फे सिंद्ठासन पर यैठने के २६ वर्ष पहले उदयन ने पश्यायती आर बासवदुत्ता से विधाह कर दिपा भा, र घद्द एक स्म्रतन्न शक्तिशाली नरश था इन पाता -फे देखने से यद्वी ठीफ जेंथता हैँ कि पद्योपवी अजातशब् फ्री ही घड़ी पषन थी, फ्याकि पद्मावती को पझ्जातशत्र से बढ़ी मानन फे लिये यद्द विवरण ग्रेथेट् ऐै। दृंशेफ का उत्लेस्प पुराणों में मिद्षत्ता है, नग्द




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