गुलाब साहब की वानी | Gulab Sahab Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८
सन साथा का अग
गुरु के! बचन हृदय छै राजे
पॉँचीा इंद्री जारै। ,. *' ,
मनहिं जीति भाया बसि करिके,
काम क्रोध के मारे ७ २ ४
लेप माह ममता के त्याग, -
छस्ता जीमि निवारे।
सील संतोष से आसन माह,
निसु दिन सब्द जिचारै ॥ ३ ॥ .
जीव दया करि आप संप्नारे
साथ सगति चित्त छाजे।
कह गलाल सलगरू बलिहारी,
बहरि न भवजल आजे 0४ ४
दा ॥ शब्द ४ 0
सतो कठिन अर्परबल्ठ नारी ।
सबहीं बरलहि भोग किये। है,
अजहू कन्या क्कारी ॥ ९ 0
जननी हैं के सब जग पाला,
बहु विधि दूच पियाईं ।
सुद्र रूप सरूप सलेना,
जोया हाइ जग खाई ॥ २॥
*बिबाह करके । जिरू ।
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