गुलाब साहब की वानी | Gulab Sahab Ki Bani

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Gulab Sahab Ki Bani by गुलाब साहब - Gulab Sahab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ सन साथा का अग गुरु के! बचन हृदय छै राजे पॉँचीा इंद्री जारै। ,. *' , मनहिं जीति भाया बसि करिके, काम क्रोध के मारे ७ २ ४ लेप माह ममता के त्याग, - छस्ता जीमि निवारे। सील संतोष से आसन माह, निसु दिन सब्द जिचारै ॥ ३ ॥ . जीव दया करि आप संप्नारे साथ सगति चित्त छाजे। कह गलाल सलगरू बलिहारी, बहरि न भवजल आजे 0४ ४ दा ॥ शब्द ४ 0 सतो कठिन अर्परबल्ठ नारी । सबहीं बरलहि भोग किये। है, अजहू कन्या क्कारी ॥ ९ 0 जननी हैं के सब जग पाला, बहु विधि दूच पियाईं । सुद्र रूप सरूप सलेना, जोया हाइ जग खाई ॥ २॥ *बिबाह करके । जिरू । 1




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