कबीर पदसंग्रह | Kabir Pad Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kabir Pad Sangrah by बाबा किसनदास - Baba Kisanadas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बाबा किसनदास - Baba Kisanadas

Add Infomation AboutBaba Kisanadas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
है अर हा रे) कहे कबीर चेतरे अंधा ॥ रे 5 -.संत्त राम झूठा सब घंधा॥ ५ ॥ ४ पद १९. ( राग गौडी ) £ जम ते उलट भ्रए हैं राम ॥ । ४1 वुश्ख बिनसे सुख कीयो बिसराम ॥१॥ ४ | बरी उछठ भए हे सीता ॥ ् साकत उलट सुजन भ्ण चीता॥ २४ अब सोह सरब कुशल कर सान्या ॥ सांत भ्ट जब गोबिंद जञान्या ॥ ३ ॥ तनमय छोती कोंद उपाध ॥ उलठ भाई सुख सढेज समाघ॥ ४ ॥ आप पछाने आपे आप ॥ रोगन व्यापे, तीनो ताप ॥ ५॥ अब मन उलठ सनातन हुवा | तब जान्या जब जीवत मुवा॥ ६ 0 कहे कृवीर' सुख सदेज समाओ ॥ आप नडरो ना और डराओ॥ ७ ॥ पृद्‌ २० (राग मौडी ) पिंड झुंये जीव कहे घर जाता ॥ सबद अतीत,अनाहछुद राता ॥ १ ॥ जिन राम जान्या तिनहे पछान्या ॥ जियुं गुंगे साकर मन मान्या॥ २॥ 2 46224 रत धर 21 2 के न इस 42: 48 छ्क




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now