साहित्य हृदय भाग - 2 | Sahity Hriday Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हरिश्चंद्र शर्मा - Harishchandra Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३२० )
बाहर निकाल और बिरुद्ध आचरण पर दिद्युत दएडाधात
करता है और बह क्रुद्ध हो घुर घुरा रहा हैं ।
पृ० ८३ प्रथम भाग
(३)
या यदद कहें कि सूर्य्य क्रिरण रूपी महाबाराह, डूथी हुई
इस पृथ्वी को अन्धकार मय-समुद्र से उद्धार कर रहा है या
ऐसा समभ॑ कि बसुमती देवी का आनन जो अन्धकार घुघुट से
ढेपा था सूर्य्य दुलहा अपने हाथों से हरक्षण में खोल रहा है ।
पृ० १४६ प्रथम भाग
(४)
कास के विकास सिप जटिल तपरूबी सा, नदियों के
निर्मल और शान्तता से पहाने के मिप जो गियों सा, जलपक्षियों
केा इस ताल से उस में भेजने के मिप कप्तना सा, प्रात काल
वृक्षों से हिमाश्रू, गिरा प्रिया से त्रिरद्धित प्रमी सा, करवनों फे।
सुस्यादु फल से सश्ित कर पक्षियों के सदावर्त बाटने मिप
हुपति सा शरद. - इसका चणन फ्याही अनुपम, नयीन, मनोहर
और विशदद्दे कि पाठक रूपय पृ०२०४ और २०५ (प्रथम भाग)
में पढ कर उनका कठपना शक्ति से मुग्ध हों। विशेष उद्धत
करना अनुचित मालुम पडता है ।
(५)
“ज्येष्ठ ऋर लोमी नृपति सा, नदी, सरोचर तडाग और
अनेक जलाशयों के जल सम्पत्ति के नि शेष स्यूटने हुए भी
सन्तुष्ट नहीं होता और नित्य ही कलक्र सा तहसीलदार
सूर्य के घुडुकता कि वे अपने अशु सिपादियों के ताफीद करें
कि आद्वता सम्पत्ति कहों चसूल द्वोने के पडी न
,._ रद्द जाय 1
+े
पृ० ६ द्वितीय भाग
User Reviews
No Reviews | Add Yours...