सन बयालीस का विद्रोह | San Bayalis Ka Vidroh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
422
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-प्रवेश
.. हवा का भोंका जो चलना होता है, चलता ही है, घटनाएं जो होनी
होती हैं, होकर ही रहती हैं । पर हस केवल उनन््ते कारणों का विवेचन
सात्र करते हैं
5 विंवदर छा गो
* + ४.
हो सकता हूँ मेरा यह प्रयास भी. ऐसा ही हो । पर इच्छा हुईं कि क्यों
ते इस महान आनन््दोलत. पर, जिसके वेग में लाखों नर और नारी, बढ़े और
जवान श्राद्या, जोश एवं: तंडप से यक्रायके उठे, आगे बढ़े भर श्रन्त में कुछ
पीछे हटते से भी दीख॑ पड़े, कुछ लिखे; क्यों न इसः अखिल भारतवर्षीय कांति
के, जिसके उन्माद़ में होनी वाली. भ्रनेंक मुख्य घटनांश्रों की खबर हर प्रकार
से दुनिया से छिपाई गई श्रौर जिसके नेताओं को तथा उन्तके उद्देश्य एवं ध्येय
को हर तरह के बुरे व भद्दे अर्थ पहनाकर दुनिया की आंखों में धूल झोंकने
के यहां, और बाहर, अनेक अभ्रसफल प्रयत्न किये गये, ध्येय, नीति, उत्पत्ति
काल, विकास, गतिविधि , व्यूह-रचना वारों झादि के सम्बन्ध में निष्पक्ष दृष्टि
से श्रौर वैज्ञानिक ढंग पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करूँ ?
मेरा विश्वास हैं कि दुनिया के इतिहास सें दबे-पिसे व पद-दलित
लोगों के श्ननेक सफल व प्रसफल प्रयत्न हुए हैं; पर सन् १६४२ का “खुला
विद्रोह पुराने सब प्रयत्नों से ध्येय, नीति-निषुणता, संगठन, बलिदान, विस्तार
और जनोत्साह श्रादि सभी बातों में कहीं बढ़ा-चढ़ा हैं। सन् १८५७ की गदर-
फ्रांसीसी राज्यक्रांति, सन् १९१७ की रूसी लाल क्रांति सभी कितनी ही बातों में
उसके सामने फीके जान पड़ते हैं। यह वह महान् प्रयत्न था जिसमें प्राय: सभी
भारतीय नवयुवकों ने, जिनके हृदय में जरा भी श्राज्ादी की कसक व तड़प|बाकी
थी, किसी-त-किसी रूप में हिस्सा लिया | यह वह सामूहिक प्रयत्न था, जिसकी
चिनगारी गांव-गांव में फूल गई । ऐसा लगता था कि सारा राष्ट्र गहरी नींदसे
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