श्री लोकाशाह मत - समर्थन | Shri Lokashah Mat Samarthan

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Shri Lokashah Mat Samarthan by रतनलाल डोशी - Ratanlal Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) श्रीमान लॉकाशाह के विपय में पूवे व पश्चात्‌ लेखनी उठाई है और गाहिया अदान की है उनका धमाण देच। सर्वे था अन्याय है । यदि अभ्यासी बन्धु जरा प्रोढ़ बुद्धि से विचार करते तो उन्हें सर्यवत्‌ प्रकट मालूम देता कि--जिन महापुरुष को में सामायिऊ, दया, दानादि के उत्यापक कद्दने की छुप्टता करता हैं, जरा उनके अलुयाइयों की ओर तो मेरी अवलोकन दृष्टि डालू कि-- वे उक्त क्रिया: फरते हैं या नहीं? यदि इतना कष्ट भी आपने किया द्योता तो यद्द बृहद्‌ भूल करने का अवसर नहीं आता! अरे अन>भ्यासी पन्‍्धघु ! जरा लॉकाशाह के अल्ुवाइयों फी शोर तो आंस उठाकर देखो, उनके समाज में सामा यिक, प्रतिपूर्ण पीपध, प्रतिकरमण, त्याग, प्रत्याय्यान, दया, दान आदि किस प्रकार प्रचुर परिमाण में होते है| उम्रऊे सामने तो आपकी सम्प्रदाय में उक्त क्रियाएं ब्रहुन स्पृटप मात्रा में दोती हैं । फिर आपका अभ्यास रहित वाक्य किस प्रकार सत्य द्वो सऊता है ? क्या जिस समाज में जो क्रियाएं प्रचुर्ता से पाई जाती दे उनके लिए उनक पूर्वजों को उत्था पक्र कह डालना भूखता नहीं है ” अतएव लॉकाशाह मत समर्थन में जो मृतिपूज्ना विषयक तिचार किया गया हे चद्द जाकाशाह मत समथन झवश्य हैं । २--अन>भ्यासी बन्धु लोकाशाह के लिए इस्लाम स- सुक्षति फी डुद्वाई देते हैँ, इस विपय में अधिक नहीं लिफ कर फेधतल यदी निवेदन किया जाता है क्लि भाई साहर




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