श्रमण संस्कृति और कला | Sharman Sanskriti Aur Kala

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Sharman Sanskriti Aur Kala by मुनि कान्ति सागर - Muni Kanti Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ्रमण संस्कृति जय ततयतय- अ्रमण-सस्कृति के विषय में द्ाज के ऊुछ विद्वाना में कितना श्रजान उला हुआ है, इसका ताजा अन॒मव मुझे हाल ही में हुआ | एक दिन मरे एक अनुभवी मित्र ने पूछा फि श्रमण-सस्कृति क्या बला है! उनका मत था कि बट तो बिलकुल नयी धारा है ) इस प्रकार श्राज के युग में भारतीय संस्कृति को मजबूत करने के बजाय नयी नयी घाराशों का समर्थन करना एक प्रकार से प्राचीन जाल से बहती हुई धारा के पति अन्याय फरना है। मुझे उनके इन शब्दों ने आश्चर्य में इसलिए दाल दिया के वे श्राथुनिक श्र्य म न केयल शिक्षित ही थे, अपितठ शिल्प-स्थापत्य कला के कुछ ञ्रगों में उनकी गति भी थी। परन्तु मुक्त ऐसा लगा कि सल्कति के सम्बन्ध में उनका *इष्टिकोण सकुचित था श्औौर उनकी घ्वनि से कुछ ऐसा भी प्रतीत टो रद्या था, जेसे वे मुझ से मनवाना चादइते हों कि सस्कत साहित्य आदि में वर्णित वंदिक सस्कृति द्वी-थ्रा्यों की रुस्कृति ऐ | प्रयतिशीन युग में इस प्रकार की बातों को कोरी भायुक्ठा के श्रतिरिक्त और कहा ही क्या जा सउ्ता है ! यां तो सस्कृति जमे व्यापक शब्द को साम्पदायिक पधनों में बाँधने का वैसा ही नतीजा द्वोगा जेसा कि भारतीय शिल्प श्रौर चित्रकला के कुछ श्रालोचकों ने प्रायमिक-फाल में सम्प्रदायों फे साथ कला को पयाँधा था। जैसे जन कला, बौद कला, ब्रादण कला श्रादि। कला की अपेक्षा सस्टृति कईी श्रधिक ज्यापत हे। शत मेरे पिचार में रुस्कृति को सीमित फरना उचित नहीं-श्रच्छा तो यही होगा ऊह्रि उसे इम मानव-




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