सोलह भावना तथा दश धर्म | Solah Bhavana Tatha Das Dharm

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Solah Bhavana Tatha Das Dharm by सुरेश कुमार - Suresh Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) कारण ईै दर्शन विशुद्धता नाहो हाय ता अन्य पन्द्रह भायना नाही हाय है यात सप्तारका दु सरूप अन्धकारके नाश फरनेकू सरयेसमान है भव्यनिकू परम शरण है ऐसी दुर्शनविशुद्धता नाम भावना भावहू | जैसे स्वपरद्रव्यका मेद गिज्ञान उज्यल हाय तैंते यत्त ररहु | ये जोय अनादिकालक। मिथ्पात्वनाम करमके बशि है।य आपका स्मरूपफी अर परकी पहिचान ही नाही करी जमे पर्यायकर्मफे उदयत पर्याय पा+ तेसी पर्यायदू ही अपना स्परूप जानता अपना सत्यार्थरूपका ज्नमैं अन्य हाय आपके स्परूपत अप्द हुआ चतुर्गतिसे अ्रमण कर है देवकू जाने नाहीं धमः मानें नाही सुमुरु इगुरुहू जाने नाहीं। बहुरि पृष्यका, पापका, इसलेफका, परलेककफा त्यागनेयेग्य, गद्णकरने येग्य, भद्यअमध्ष्यका, सत्सगका कुसगक़ा, शास्त्रका दुशोस्‍्त का पिचार रहित कमका उदयके रसमें एकरूप भया अपना द्वित अद्वितक्र नाही पहिचानता परद्रव्यनिंग लालसारप द्वाय सदाफाल बलेशित हाय रहा है कोऊ अकस्मात फाललब्धिकेः अमाविते उत्तमकूंडादिकम जिनन्द्रधर्म पाया है यातें बीत्तरागें- सर्यक्षका अेकातरुप परमागमे प्रस्तादर्े प्रभाणनयनिश्षेपनितें निर्णयकरि परीक्षाका प्रधानी हाय बीवरागी सम्पज्ञानी गुरुनि के प्रसाद ऐपा निश्वय भया जो एक जाननेग्रंछा_शायकरूप & 261




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