स्वप्न भंग | Swapn Bhang

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Swapn Bhang by प्रतापचन्द्र- Pratapchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अभिनय करके वह जो कुछ कमाती थी, उससे उस्ते बहुत खुशी होती थी। ये सब बातें बताते नकुल दास ने कहा, “विश्वास कीजिए सर, बाडी- वाली की लड़की हुई तो क्या हुआ, झूनू खरी लड़की है 1 कोई पाप नहीं है उसमें | कम-से-कम लड़की के बारे में मैंने अपने भाई को नहों छला है।” “तब तुम लोग उसे त्याग क्यो रहे हो ?” मैंने कहा, पर को बहू को घर लौटा से जाओ । बात यत्म करो ।” “यह हो नही सकता सर,” नकुल बोला, “अब सारी बात खुल गईं है। गाव में रहा नही जा सकता 17 +४० विश्वास करो, में निष्याप हूं,” मालती ने अपने पत्न मे लिया था, “फिर तुम मुझे त्याग बयोकर रहे हो ? यह सच है कि मेरी मां का चरित्र आज छिपा नही है। हमने छिपाता चाहा भी नही था। तुम्हारे भैया, मेरे जेठजी तो सभी कुछ जानते थे । उन्होने अगर तुम्हे बतलाया नहीं तो बया ये मेरा अपराध है ? सुहागरात को स्वयं मैंने तुम्हे सब कुछ बतला दिया था। बोलो, तब तो तुमने मुझे दोषी नद्ी माना या मुझे बाहों मे बाधकर कान में कद्दा था, वह सब भूल जाओ धूनू , ये सब बातें किसी को मत बताना; पछी को भी पता न चले । इसका यही तो अर्य होता है ना, कि सुमने मुझे क्षमा कर दिया था! तुमने मुझे ग्रहण किया था, प्यास-सुह्यग से भर दिया था । इसी का गर्व है मुझे । पर आज मेरे प्राणों के देवता कहा हैं ? मुझे क्यो भूल गएवड ? मुझे क्यो छोड दिया हे ? आखिर क्यो, क्यों, ययो ? बया अपराध किया है मैंने ? एक और पत्न में मालती ने लिखा था, “हाथ काप रहे हैं, फिर भी तुम्हें लिख रही हूं, क्योकि ये बातें तुम्हारे सामने कहने का मुझसे साहस नही है, न होगा। तुम्हारे भंया ने मुझसे ब्याह करना चाहा था, पर मैं ही तंयार नदी हुई । इसलिए नही कि वे वैरिस्टर साहब के यहा ड्राइवरी करते हैं। अगर कोई सही रास्ते पर चलकर कमाता है, भले ही द्राइवरी कक




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