आधुनिक हिन्दी - मराठी में काव्य - शास्त्रीय अध्ययन | Aadhunik Hindi - Marathi Men Kavya - Shastriya Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हद दे रति आदि नी स्थायीमाव एक्स सोनसथरास्त्र के न सौलिक मनोविकरर हैं और न व्युत्पन्न मनोविषार ही | शान्त्र का स्थायीमाव “शर्म तथा अदभुत का स्थायी भाव 'विस्मय' मौलिक मवोविवार मे नहीं रखे जा सवते, वप्ोविः एक मे बुद्धितत्व का प्राधाय है ता दूसरा स्पप्टत ही मिश्र भाव है। दूसरी ओर सभो स्थायीभाव व्युत्पन्न मनोविवार वे बतगत भी नहीं रखे जा सकते, श्योदि' इनम बतिपय स्थायीभावा--भेय, क्राघ आदि--को मानपतास्त्र मोलिए मनोविवार भानता है न कि व्युत्प्न मनोविषार | पठत स्थायी भाव एकातत ने मौलिद मनोविवार है और न व्युलन्न मनाविकार ही । जहां तर इतके मानसंचास्त्र के सिंटिमेंट! से साम्य ना प्रइन है, डा० नगद मी मायतानुसार दोनो में निम्नलिवित साम्य-्वैपस्थ उपला् होता है समता-(१) मनोयूत्ति (सटिमट) की भाँति स्थायीभाव भी अय (सचारी) भावा वी अप्रेशा स्थायी होता है 1 (२) मवावृत्ति की ही आँति स्थायरीमाव एक मनांदणा है, जिसमे मय भाव सचरण करते रहते हैं । विपमता--परन्तु दोन। म कुछ मौरिक अन्तर भी है-- (१) मनावृत्ति एव व्याप्त मने स्थिति मात्र है, जिसदे समग्र रूप का अनुभव वेभी नहीं हा सबंता । मनोवृत्ति बे! सचारी वा ही भा स्वाटन हा सबता है मनावत्ति स्वय वा नहीं | उदाहाण वे लिए टेशमवित वा आवाटन वर्भी नहों होता झख आश्िित या सारा रीमाव रमाह आदि वा ही होता है परन्तु ग्यायी वे पिषय में यह बात नहीं है, उसया पचारी ही नहीं वह स्वय भी समप्रत मास्वाय है । यटबर मनोविसरार शा शारण है रमय मतोयियार नहीं है, परन्तु भय स्वयं हो मनोविवार है ! (२) मनावत्ति नदव हो मनाविश्रर थो आवत्ति मे बाती जाता है परल्तु स्पायीमाव वे विषय मे यह सत्प नही है। हप थी जावृत्ति करते रहिये पर बह रसि नदी बने परायगा 1 (३) सनोवृत्ति सदथय विचारमूलया है, परन्तु स्थायोमाव ( मं को छोड क९) विचारमूलब मही--अ्रवृत्तिमूलक ही है ॥* डा» रापेशगुप्त ने भी भारतोय स्थापीमाव तथर पाश्चात्य मानसपास्त्रीय लडडच्चजलसससस सब १ रीतिशाप्य वा भूमिका, प० ७२-७३ ३




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