जो चाहे सो कैसे पाए | Jo Chahe So Kese Paye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
639 KB
कुल पष्ठ :
61
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यदि हम प्रपने प्रापसे प्रत्यक्ष व प्रकट धब्दों म प्राध्म
सुधार का प्रण करें तो उसका हमारे मन पर जादू-मा
प्रभाव होता है। यही धम्द-शक्ति मामय-जीवन को गाया
पत्तठ कर देती है ।
यह छिद्ध बात है कि यदि हम भाई तो स्भ्पस
मन से कर सकते हैं। मन, बातों को सुनता
तथा स्वीबार मो करता है। प्रावश्यकता इस यात की
है कि मम से मौन रूप स बात मे कहकर प्रकट छार्म्दों में
बहूँ | प्रगट गहने से मन पर दिगुणित प्रमाव होता है।
यदि हमारे शब्दों में सत्य है सो उससे हमारा चरित्र
खथया जोवन सुधर सकता है। धोर निराशा एवं प्रसफ-
सता में भी, बहुत-से सोग प्रपने स््रन्त'करण से बार्तासाप
करके हो प्रसापारण सफसप्तता प्रीर विजय प्राप्तनर
जुब हैं । एवं स्यक्ित सज्जा, संगोश्र तपा हीमन मावता
से ग्रस्त भा ) वह सोर्गो के सम्मुग भाने यम्राठत बरने
से कतराठा था। उसमें घ्ात्मबिग्यास ठो था हो महीं,
साथ हो उसे यह भ्रम था कि वह स्थय छत्तिया है
परन्तु वास्तविकता यह थो दि वह एक ईमानदार तगा
परिधमी ध्यक्ति था । प्रकस्मात् एक दिन उसे एक नई
विधारधषारा को पुस्तर प्राप्त बे उसके प्रध्यपन से उस
एड नवीन प्रकाश वो झिरण दिपाई दो । उस पुस्तक स
यह सुझ्याव था कि प्पने प्रापको उत्साहित करन से
मनुष्य शक्ष्ति-शासी हो जाता है. विधेषत प्रवट घर्स्दी
में उत्साहित करने से। उस पुम्दप को बातों शो टीक
मासकर उसने उन पर भाचरण करमा प्रारम्म कर
दिया । उसने नित्य प्रति प्रपने झापसे बार्सासाप करने का
र्श
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