रघु नये कहानीकार | Raghu Naye Kahanikar

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Raghu Naye Kahanikar by सतीश जमाली - Satish Jamali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_7- . शरीर से परे || २७ घर वापस लौट आया था । कमरे की खिड़की से उसका बहू बरांडा दिल रहा है जहाँ कुर्सी अथवा चारपाई पर बसंत उसे-गोद में लाकर बैठा दिया करता था। वसन्‍्त के न होने पर मैं मी उसे बिठा चुका था और फिर शुरू हो जाती थी हमारी अनन्त वहस 1 विषय ढूँढने की या जरूरत, दिन-रात कितावो और मैगजीन तथा अखवारों की खबरों में सिर खपाये जया किसी भो विषय मा टॉपिक पर अधिकारिक ज्ञान रखती थी। अपनी तो पज्जियाँ ही उड़.जाती थी । लेकिन उससे वहस करना भी कितना दिनचस्प था*०? विषय शायद बांगला देश .संघर्ष ही-था। 'निहत्ये भुखे -लोग मुका- दिला कब तक करेंगे यह संदेहास्पद लगता है,” कहते ,ही ऐसा बिगड़ी वह ' मानो मैने.कोई माली दे दी उसको”... -., ,-- -- ्रशातशवाबू, सरकारी.अफसर ,बन जाना आसान है | आत्मा और जीवन का लक्ष्य समझ प्राना - मुश्किल : 'पता- नहीं तुम्हारी: स्मरणशक्ति इननी बोगस क्यों है. कि इतिहास भो याद नहीं रहता ; -- और जब सब कुछ ठोक, हो गया तो उसको चिट्ठी मिली थी, 'तुम बाजी हार गये । यदि शरीर ,से अपाहिज नहीं होती तो स्रौ किलोमीटर को दूरी नाप कर तुम्हारी गदंव पर सवार हो जाती ।, खैर-जब आओ तो मेरी-जीत्‌ की मिठाई लेते,आना । तुम्हारी हार का -हिंस्सा भी-लगाऊंगी, आसिर तो“ तुमसा अजीज दुश्मन मी-“कहाँ मिलेगा* “ज्यादा नहीं लिख नकनी, हाथ दुखता है”. -. -« * मिठाई लेकर ही आया था। मजुला मामो से कह कर पहला हिस्सा उसने मेरा लगवाया था, “अपने हाथ से खिलाती तुम्हें'“लेकिन तुम्दारे मगवात ने मार रखा है कह कर मुँह आगे बढ़ा दिया, “तुम तो मुझे थिला सकते हो ५! थैंक्यू देरी मच केः सरय एक अदुमुत विजयोल्लास उसके एनोमिक पीले चेहरे पर सैर गया था । बादल की स्थाह छाया ने आकाश का तीन चौथाई हिस्सा घेरकर-एक चोबमाई में पाती मर दिया था, जया बड़े गोर से देख रहो थो । मैं उठ कर :उसकी चारपाई प९ उसके पास




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