राजनीति विज्ञान | Rajaneeti Vigyan

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Rajaneeti Vigyan by वी॰ के॰ अरोड़ा - V. K. Aroda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजनीति शास्त्र की परिभाषा, क्षेत्र व महृत्त्व 13 सक्षेप मे, राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के ध्रातमत राज्य के भूत, भविष्य शौर वतमान का भ्रध्ययत ध्ाता है। गानर ने लिखा है कि “सामायतया इसकी (राजनोति शास्त्र की) बुनियादी समस्पाओ से तीन प्रदार की बारें शासिल हैं--प्रथम, राज्य की प्रकृति या उत्पत्ति फी खोज, द्वितोय राजनीतिक सस्याभों फे स्वपरू, उनके इतिहास तथा विभिव रूपो की खोज, ततीय, इन दोनों के श्राधार पर राजनीतिक धविकांस फे नियमों की, जहाँ तक हो सके, निश्चिचत फरना ।” इसी शली मे बोलते हुए गैटिल भी लिखता है कि “राजनीति शास्त्र दसा था! का ऐतिहासिक झनुस'घाव, राज्य कैसा है का विश्लेषणात्मक ध्रध्ययन, तथा “राज्य कसा होना चाहिये' का राजनीतिक व नतिक विचार-म यन है।' * सरकार का अध्ययन राज्य का कोई पश्रध्ययन चाहे वह कितना ही व्यापक क्यो न हो उस समय तक पूण नही हो सकता जब तक कि वह राज्य के प्रमुख तत्व सरकार का श्रध्ययन न करता हां। राज्य बेवल एक भावातत्मक विचार है, वह श्रपना कार्य स्वय नही करता। श्रपनी इच्छा को व्यवत्त करने तथा उसे लागू करने के लिये उसे एक एस झग की झावश्य- कत्ता होती है, जिसे सरकार कहते हूँ । परत सरकार राज्य का वह यात्र है जिसके द्वारा ही वह जाना जाता है। दूसरे शब्दो मे, सरकार राज्य की क्रियात्मक अभिव्यक्ति है । इसलिये राज्य के प्रध्ययन मे स्वाभाविक रूप से सरकार की प्रकृति, उसके स्वरूप, वाय॑ और सगठन वा भ्ध्ययन भी शामिल है। सक्षेप मे, राजनीति शाघ्त्र राज्य के साथ साथ सरवार वा भ्रध्ययन करता है भौर उसके भावी स्वरूप पर विचार विमश भी करता है। स्थानीय, राष्ट्रीय भौर भ्रस्तर्राष्ट्रीय समस्याश्रों का श्रध्यपन < राज्य के विकास वे साथ साथ राज्य की समस्याओआ मे भी वृद्धि हुई है। भ्रूतान के नगर राज्यो का सगठन झ्ाघुनिक राष्ट्रोय राज्यों के सगठन वी भाँति जटिल नहीं था। जनतख्या के प्रसार तथा वतानिक आविध्कारों ने राज्य की समस्याओ मे श्रप्रत्या- द्ित वृद्धि को है। भ्रत प्रत्येक स्तर पर उयका निराकरण करने के प्रयास जारी हैं। राजनीति शास्त्र स्थानीय स्तर पर, लगभग सम्पूण विदव मे, स्थापित वी गयी सस्पान्ना जैसे ग्राम पचायत, सगरपालिका, कम्यून भादि के सगठत तथा उनकी काय प्रणालियों का भव्ययन करता है । इसके क्षेत्र मे वे सम्यूण समस्याएँ भी भाती हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशो के लिये विचारणीय होती हैं, जैसे, जाति, भाषा, घम या सम्प्रदाय के भ्राधार पर बंदे लोगों म॑ राष्ट्रीय एकता की भावना भरने की समस्या | देश की वित्तीय स्थिति को सवारना श्ौर उसकी प्रादेशिक प्रखण्डता की रक्षा करना । इतना ही नही, राजनीति शास्त्र मे प्तर्रोष्ट्रीय समस्याप्रों पर भी विचार विमशे होता है । भतर्राष्ट्रीय समस्याप्रो न विदिशा पल मजा. जाम थक 32. एगाएभ उलद्वाव्ट 15. 8 ग्रिडणाट३ प्रा१्व्डाहदाता तीजोीयां छह 51416 1795 एश्टा.. थ7 ग्रागजात्यं आचतए 0 ज३6 116 3816 1 थापव एणेशाए० श्मार्शों ताइएपडाणा 01 जराण 01० 3190० ड1०णुत 586 +-0लाथा, बीदागधबद्धाणा 10 2गपात्वाँ इटला2र ए 4 है के




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