शर्म आती है मगर | Sharm Aati Hai Magar

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Sharm Aati Hai Magar by इकराम राजस्थानी - Ikram Rajasthani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तलाक का मुकदमा दृश्य अदालत की गरमागरमी 'शोरा शशाबा' बाने-जाने चालो के स्वर और फिर बीच भें से जज की आवाज का उभरना ! जज आर्डर-आईर--ह तो आज का मुकदमा पेश किया जाएं । सबसे पहला केस लक्ष्मी विरुद्ध ग्रोपाल । इ है हाजिर किया जाए। दोनो हम तो हाजिर हैं हजूर--कब से कटघरे मे खडे हैं। जज इहे कसम दिलवाइए। गोपाल किस बात की कसम साथ ये कसमे यहा भी चलती हैं क्या? खामोश रहिए--ये अदालत है “आपका घर नहीं-- जहा आप चाहे जो बोलें । ह॒मू र, वह भी कहा बोल पाता हू। मौका ही नही देती श्रीमती जी मुझे बोलने का। वैसे माफ करें हजूर-- जज साहब घर पर तो आप भी नही बोल पाते होगे ओह शटभअप, ये वया वकवास है । बहुत बेवकूफ है आप लक्ष्मी जज साहव थे मेरे पति हैं। अब आप ही सोचिए ऐसे शाम आती है ममर 25 जज गोपाल जज जे




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