माधव - माधुरी | Madhav Madhuri

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Madhav Madhuri by रामसेवक चौबे - Ramasevak Chaube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) नर पशु अपर चतत घरनो पर गृह पपान बहु छाई॥॥ मस्त दवित स्गत करत नर वहु निधि जल द्वित खात सोठाई । उठत चलत बैठत सोयत नर धायत दुस न जनाई॥ सत बश द्विज वश घरत पद भुवि उर पुर सुस पाई । भक्त कोड सोपचादि धरतपढद झुस लहु भुवि अधिकाई॥ परशरा पर द्रोह निरत जोइ अथघकृत जन समुदाई। कोइ चिथधि चरन घरत घरनी तल शिर घुनि भुवि पछताई ॥। कसादिक सल भार अधिक लद्दिनहिं सुवि उर सहि जाई । विकलता भुत्रि राम सेवक हुरु दीन-बंघु यदुराई ॥१०1 गो रूप धरणि बरधारी । लंखि कसादिक श्रघ भारी ॥ टेक ॥ सद्दि नहिं सफेउ भार धरणी उर मुनि गन जाइ पुफारी । बयोधन लहु मुनि गन जुत पुनि झुप्रि देवन सकल दुलारी ॥ देवन सो नहिं द्वानि दु स कोइ को अप भार उतारी। सकल देव मुनि धेन्नु सहित पुनि गो विधि भवन विचारी ॥ धेज्ठु गेय निज दुस विधि सन कहु करु विधि टोपि सुसारी। सुर भुुनि मिलि विधि क्षीरसिधु चल सग धनु त्रिपुरारी ॥ सिंधु तीर धरि धीर देव सम धेहु सहित मुनि मारी! एक टक निरस्त राम सेवक सब विधि अस्तुति अछ्ठुसारी ॥ १ ॥। राग कल्यान जयति जयति जय मुकुर जयति हद भजन । त्रित्तैताप पाप शाप अब समस्त गजन | टेक | जैति चरन सरन पाल सुर मुनि लसि भ्दि विद्ाल - लीजय पनाव सदा भक्त रजन॑ ॥ र्‌




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