कौमी एकता की तलाश और अन्य रचनाएं | Kaumi Ekata Ki Talash Aur Anya Rachanaen

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Kaumi Ekata Ki Talash Aur Anya Rachanaen by शिवरतन थानवी - Shivratan Thanavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अफ्रीकी कविता के कुछ छींटे शयामलाल कौशिक विगत काल में अफ्रीका में भी भारत के समान ग्राम राज्य होते थे। प्रत्येक गाँव का अपना मुखिया होता था और अपना पुरोहित । मुखिया की सहायता के लिए बडे-बूढो की परामर्शदात्री परिषद्‌ होती थी गांव के अपने पहलवान होते थे जो गाँव की रक्षा तथा मम्मान के लिए दूसरे गाँवो के पहलवानों से मल्‍्लयुद्ध किया करते थे । इन पहलवानों का पोषण पूरा गाँव किया करता था। मल्लयुद्ध में विजय प्राप्त करने वाले पहलवानों को गाँव की ओर से अनेक बहुमूल्य उपहार दिये जाते थे। गाँव की सुन्दरतम किशोरियाँ उन्हें पत्नियों के रूप में भेंट में दी जाती थी। उपनिवेशकाल में शिक्षा के प्रति आकर्षण बढने पर गाँव के प्रतिभावान बालको तथा किशोर रो को पूरे गाँव के व्यय पर शिक्षा दिलाई जाने लगी। कुछ को यूरोप में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा जाने लगा। बाहर शिक्षा प्राप्त करने जाने वाले छात्रों को पूरा माँव गाजे-ब्ाजे के साथ समारोहपूर्वक विदा करता और शिक्षा प्राप्त करके लौटने पर उनका भव्य स्वागत करने के लिए उमड़ पडता | ऐसे नवयुवको को पूरे गाँव का गौरव समझा जाता और उनसे प्राम की प्रगति में भारी योगदान की आशा की जाती । किन्तु प्रायः ऐसा होने लगा कि यह तथाकथित उच्च शिक्षा इन नवयुवकों को बिलकुल बदल डालती, और वे अपने खान-पान और वेश-भूपषा मे ही नही, अपने आचार-विचार में भी पाश्चात्य रग मे रंग जाते। मैकाले की आशा फली- भूत हो जाती । अत. जब वे गाँव में लौटते तो गाँव वाले उन्हे पूर्णतया विदेशी पाते । उनकी गर्मजोशी शीघ्र समाप्त हो जाती और उन्हें इस निष्कर्प पर पहुँचने में देर न लगती कि उनके ये सपूत उनसे कट चुके है, उनका मार्ग भिन्‍न हो गया है। कीनिमा के कवि खाडंदी असालाचे ने (९०४४४ ० ४४४५ ४” शीर्षक से लिखी




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