आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुनर्मूल्यांकन | Acharya Ramachandra Shukl Punarmulyankan

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Book Image : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुनर्मूल्यांकन  - Acharya Ramachandra Shukl Punarmulyankan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कौति पाप्त हुईैं, उनका दौध जीवन भी इतना महत्वमय झौर शातिमय रहा, सब इसी सातसिक स्वतञ्॒ता, निद्ध सता और झात्मनिमरता के कारण झपनिवेशिक बुद्धिवाद को फ्टकारने के उद्देश्य से ही उहाने विखा-मेरी समझ मे शिवाजी के सवारो की तरह चने बाघकर चलना, औरगजेव के सवारों की तरह हुकफे और पानदान वे साथ चलने से पच्छा है” चारा तरफ बौद्धिक उपनिवेशन के प्रथल वैग के कारण राष्ट्रीय मुक्ति झदोलन बी क्षमतात्रा का क्षय होने लगा था, जिससे श्रपती जाति को बचाना रामचद्र शुक्ल का एक मुख्य उद्देश्य था कुछ प्रगतिवादी आतोचको को क्रातिकारी परिवतत पर भरोसा न होन के कारण सुधारवाद कुछ अधिक प्रिय लगता है वे आ्राधारभूव ढाचे में परिवतन के स्थान पर सुधारवाद इसलिए पप्तद करते है कि उह्े भारतीय समाज पिछड़ा और क्रातिकारी परिवतन की दृष्टि से हमेशा भ्रपरिपक्व नजर भ्राता है. उ'ह पुराने दिनो के सुधारवाद मे भी वीडिक वैज्ञानिक चेतवा, समाज को भ्रागे की तरफ ले जाने की दृष्ठि तथा लगातार और पता नहीं क्‍या क्या दिखता है राष्ट्रीय मुक्ति चेतना के ऐतिहासिक विकास में सुधारवाद की नि सदेह एक महतत्वपूण ऐतिहासिवा भूमिका है लेकिन परिस्थितियों वे विकास से सम्ब ध न बठा पाने की वजह से कहा उसमे अ्रवरीध श्राया, यह पहचातना होगा बीसवी शताब्दी के आरम्म में सुधारवाद पूरी तरह उपनिवेशवाद का पिछलग्यू बन गया था सारा सुधारवाद पश्चिमी सम्यता की लाइन पर चल रहा था देश की परम्परा भौर एतिहासिक जरूरत में उसका कोई रिश्ता न था पर 1905 मे जापान वी विजप तदनतर रूस में व्यापक जागरण तथा भारत मे क्रातिकारी तैयारी की कुछ घटनाओा ने जनता की भार्खें साल दी भ्रौर उसका सुधारवाद से मोह टूट गया प्रताप कार्यालय से बिना किसी लेखक के नाम से 1919 मे 'साम्यवाद” शीपक से जो पुस्तक प्रकाशित हुई उप्तम स्पष्ट घोषणा है कि भ्राजकल वे साम्यवादी विशेषकर राजनतिक और क्रातिकारी हैं वे श्रौद्योगिक श्र सामाजिव समठत एवं शासन प्रणाली में क्रातिकारी परिवतन थाहते है सुधारवादियों वी तरह वे तिफ इतना नही चाहते वि वनम्राव समाज रूपी मशीन में कुछ सुधार कर दिये जायें चरन्‌ वे यह चाहते हैं कि झ्ाजकल के सामाजिक संगठन को बिल्कुल उलट दिया जाय बिल्कुल उलट देने को परिस्थिति तब नही थी, लेकिन ब्रिटिश उपनिवंशवाद से भारतीय जनता के गहरात झतविरोध के परिपेक्य मे अग्रेज़ी राज का खात्मा मुस्य उहेश्य बनता जा रहा था इसके बिता समाज में वह झाधथिक गतिशीचता समव नही थी, जिसके झाघार पर साप्ताजिय झुघार के कार्यों मे व्यापक्ता झाती इसलिए युद्धिवाद भौर राष्ट्रीयता में बिसी एक को चुनने की नियति से वचक्र समाज शीघ्र




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