स्वाध्याय माला | Svadhyay - Mala

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Svadhyay - Mala by रतन मुनि -Ratan Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भल्फ्यण ५-१ दसवेश्रा लियसुत्तें २१ ॥ लाल +-5ू-94+-त+>.._२ुसललिलल 4 लत--.--«+-+-+------ूवूे+ट आभोएत्ताण नीसेसं, श्रहयारं जहक्ुम॑। गमणागसण् चेव, भत्तपाणे ये संजए ॥८९॥ उज्जुप्पन्नो श्रणुव्विर्गो, श्रव्वक्खित्तेण चेयसा । आालोए गुरुसगासे, ज जहा गहिय॑ भवे ॥९०७ न सम्ममालोइयं होज्ञा, पुव्वि पच्छा व ज कडं। पुणो पडिक्कूसे तसस, वोसिट्रों चितए इम्मं ॥६१॥ श्रहो जिणेहिइसावज्ञा, वित्ती साहूण देसिया। मोक्‍्खसाहणहेउस्स, साहुदेहत्स धारणा 0६श॥ नमोक्कारेण पारेत्ता, करेत्ता जिणसंथवं। सज्क्लाय पट्वुवित्ताण, वीसमेज्ञ खर्ं मुणी ॥६३॥ चीसमतो इम चिते, हियमट्ट लाभमद्ठिओ'। जहइ मे अणुग्गह कुज्ञा, साहू होज्लामि तारिश्ो ॥९४॥ साहवो तो चियत्तेण, निमतेज्न जहक्ूम । जह तत्य केइ इच्छेज्ना, तेहि साद्धि तु भु जए ॥६५७ श्रह कोइ न इच्छेज्ञा, तञ्नो भु जेज्ञ एक्शन । आलोए भायणे साहू, जय॑ अ्परिसाडिय ॥९६॥ तित्तग व कड॒य व कसाय॑, अबिल॑ व महुरं॑ लवणं वा। एयलड्धमन्नट्टपउत्तं, महुघयं व भुजेज्ञ | संजए ॥&७॥ झरस विरसं वा वि, सुइयं वा असुददय । उलल्‍ल वा जद वा सुब्कं, संथुकुस्मासभोयर्ण ॥६८॥ १ सस्तसिश्रो




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