व्याकरण | Vyakaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
540
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रावककंथन २६
(१) वृद्धि--वृद्धिरादेच ( ११।१ )--आा, ऐ, औ को वृद्धि कहते है ।
(२) गुण--अदेडढ गुण ( १॥१४२ ) अर, ए, ओ गुण कहलाते हैं ।
( ३ ) सम्प्रसारण--( इग्यण सम्प्रसारणम् १।१।४५ ) यू, व्, रु, ल
के स्थान पर इ, उ, ऋ, लू का हो जाना सम्प्रसारण कहलाता है ।
(४ ) टि--अ्रचोषन्त्यादि टि ( १।१।६४ ) किसी भी शब्द के श्रन्तिम
स्वर और यदि उसके बाद कोई व्यञ्जन हो तो वह भी टि' कहा जाता है,
जैसे शक मे क का अकार तथा मनस् में अ्रस् टठि है ।
(५ ) उपधा--अलोब्त्त्यात्ूवूं उपधा ( १।१।६५ )--अरन्तिम वर्ण
( स्वर या व्यजन ) के तुरन्त पहिले आने वाले वर्ण ( स्वर या व्यजन ) को
“उपधा' कहते है ।
(६ ) प्रातिपदिक--प्र्थवदघातुरप्रत्यय प्रातिपदिकम् ( १।२।२४ )
धातु, प्रत्यय और प्रत्ययान्त के अतिरिक्त कोई भी शब्द जो श्र्थयुक्त हो, बह
प्रातियदिक) होता है। इनके अतिरिक्त क्रृदन््त, तद्धितान््त और समस्त पदो को
भी यह सज्ञा प्राप्त होती है--ऋत्तद्धाततिमासाइच ( १।२।४६ ) । उदाहरण
के लिए राम हाब्द लीजिए। शअ्रवतार राम के अ्रतिरिक्त किसी भ्रन्य व्यक्ति के
केवल नाम होने से यह अर्थवान् है, उसके विषय में न यह धातु है भर न प्रत्ययान्त
ही । इसलिए यह प्रातियदिक कहा जायगा । किन्तु जब अ्रवतार राम के लिए
होगा तो रम् बातु से घत्र् प्रत्ययान्त होकर कृदन्त होने के नाते प्रातिषदिक कह-
लाएगा । इसी प्रकार रघु में श्रण् प्रत्यय जोडने से तद्धितान्त राघव प्रातिपदिक
बना ।
(७ ) पद--सुप्तिदल्त बदम् ( १।४॥१४ ) सुप् ओर तिड प्रत्ययों से
युक्त होने पर कोई शब्द पद बनता है। प्रातियदिक में लगने वाले प्रत्यया को
सुप् तथा धातु में लगने वाले प्रत्ययो को तिझ् कहते है । राम मे सु प्रत्यय से राम
बना । यह पद हुआ । इसी प्रकार भू घातु में तिपू, तस् इत्यादि तिड प्रत्यय
जूडने से भवति, भवत इत्यादि क्रियापद बनते है । इसके अतिरिक्त सु से लेकर
कप् तक के प्रत्ययों मे, सर्वतामस्थान को छोड कर अ्रन्य प्रत्यया के भ्रागे जुड़ने
पर पूर्व शब्द की मी पद सज्ञा होती है । स्वादिष्वमवनामस्थाने ( १४४॥१७ ) ।
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