काव्य कलानिधि | Kavaya Kalnidhi(43)

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Kavaya Kalnidhi(43) by तारकनाथ अग्रवाल - Taraknath Agraval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम संस्करण का वक्तव्य-- .. देश की सर्वतोमुखी उन्नति का मूलाधार है शिक्षा ओर वह - : किसी ग्रकार की क्‍यों न हो, भाषा का माध्यम अनिवार्य है। हिन्दी का साहित्य अपार है, किन्तु शिक्षाक्रम की अपनी अलग कुछ आवश्यकताएं हुआ करती हैं । क्योंकि, उसमें समय ओर छात्र-छात्राओं की विविध योग्यताओं का पारस्परिक समन्वय अपेक्षित होता है । थोंडे से समय में सीमित घरातल: पर हमारे अपार साहित्य का ज्ञान तो क्या साधारण परिचय भी बहुत संभव नहीं । लेकिन शिक्षा की नींव तो यहीं . जमती है। .. शिक्षा क्रम की उपादेयता केवछ ज्ञानवधेन तक ही सीमित . नहीं होती। साहित्यिक. सुरुचि एवं पिपासा उत्पन्न करना उसकी विशेषता है । सौभाग्य की बात है कि आज हमारे साहित्य में इस ओर कितने ही अच्छे साहित्यिक संकलन इत्यादि अस्तुत हैं। लेकिन, उनमें से अधिकांश आधुनिक काव्य के . विविध उद्धरणों तक ही सीमित रह जाते हैं। हमारा _ सध्यकालीन, ब्रज ओर अवधी भाषाओं में व्यक्त काव्य _ साहित्य आजकल के संकलनों में विशेष स्थान नहीं पाता किन्तु उसका जो अपना महत्व हे या हमारे जीवन पर उसकी जितनी छाप है वह नाप तोल की चीज़ नहीं । प्रायः देखा जाता .है हमारे संकलनों में मध्यकालीन माँकी यदि थोड़ी बहुत कहीं देख भी पड़ी तो सूर ओर तुलसी तक ही रह जाती है । यह भरी ठीक है कि सूर ओर तुलसी केवल हमारे ही साहित्य के नहीं




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